उत्तर प्रदेश में हो रही हत्याओं के लिए जितनी जिम्मेदार भाजपा है उससे कम जिम्मेदार विपक्ष नहीं है ?
जिस वजह से किसी जाति को किसी धर्म को चिन्हित किया जाता है इसका सीधा-सीधा संबंध होता है कि वह किसी विचारधारा से संबंद्ध है। उस विचारधारा को मानने वाले लोग जब उसे समाज की रक्षा नहीं कर पाते और उस समाज को आपस में एकजुट नहीं कर पाते तो इसका मतलब होता है कि वह विचारधारा विचारधारा नहीं है बल्कि दिखावा है।
अब यहां यक्ष प्रश्न खड़ा होता है कि किसी पार्टी के कार्यकर्ताओं में यह ताकत कहां से आती जाती है। भाजपा के विभिन्न संगठन गोल बनाकर के नफरत के जहर समाज में बो रहे हैं, दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी के बड़े नेताओं के साथ जो कुछ हो रहा है उसके खिलाफ पूरी समाजवादी पार्टी खड़ी क्यों नजर नहीं आती या नजर नहीं आई?
जहां तक कानून का सवाल है एक मुख्यमंत्री अपने ऊपर दर्ज सारे मुकदमे वापस कर लेता है क्या इसके खिलाफ समाजवादी पार्टी कोर्ट, गई बसपा ने आवाज उठाई, कांग्रेस क्या कर रही थी?
जनाआंदोलन क्यों खड़े किए जाते हैं ? सरकारों के तानाशाही रवैया के खिलाफ ही, सरकारों को भयभीत होना पड़ता है क्या समाजवादी पार्टी की सरकार अपने समय में भयभीत नहीं रही है चाहे वह आरक्षण का सवाल हो पोस्टिंग का सवाल हो या किसी भी तरह की जानो उपयोगी कार्य का सवाल हो सब कुछ तो संवैधानिक था फिर भी क्यों डरती थी।
जिस समय वह यश भारती पुरस्कार बांट रही थी क्या उसने समाज को मजबूत करने के लिए लोगों में रोजगार हथियार और संविधान बांटे थे?
हथियार बांटने का दौर :
उत्तर प्रदेश में जब समाजवादी पार्टी की सरकार थी तब भाजपा के लोग त्रिशूल और हथियार बांट रहे थे मुजफ्फरनगर में हिंदू मुस्लिम जैसा उपद्रव कर रहे थे।
इसको संभालने की किसकी जिम्मेदारी थी ?
निरंकुश भाजपा सरकार के असंवैधानिक कार्यों पर समाजवादी पार्टी नजर आ रही थी नहीं आ रही थी एक उदाहरण भी नहीं है जहां समाजवादी पार्टी का नेता खड़ा होकर के जनता का आवाहन कर रहा हूं इस सड़क से निकलो और इस सरकार को घेरों।
यह वही समय था जब पूरी दुनिया में लोग सड़कों पर निकाल कर अपने अधिकारों की बात कर रहे थे उत्तर प्रदेश सो रहा था और एक मुसलमान नेता को तहस नहस किया जा रहा था, जो काम न्यायालय को करना चाहिए वह काम पुलिस कर रही थी और पुलिस किसके इशारे पर कर रही थी सरकार के इसारे पर कर रही थी सरकार में बैठे कौन थे जिन्होंने सरकार में आते ही अपने सारे मुकदमे वापस ले लिए थे।
क्या ऐसे व्यक्ति का घेराव नहीं हो सकता था हो सकता था लेकिन नहीं हुआ इसकी जिम्मेदारी किसकी बनती है?यही विचारणीय सवाल है। इसी सवाल का उत्तर ढूंढने की जरूरत है।
आज़म ख़ान :
उर्दू में तीख़े तंज़ करके अपने राजनीतिक विरोधियों को मुश्किल में डालने वाले आज़म ख़ान ख़ुद क़ानूनी शिकंजे में फंस गए और लंबी क़ानूनी लड़ाई के बाद आख़िरकार रिहा हो ही गए.
एक मध्यवर्गीय परिवार में पैदा हुए आज़म ख़ान ने 1970 के दशक में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से क़ानून की पढ़ाई की. यहीं के छात्रसंघ में सियासत का ककहरा सीखा. इंदिरा गांधी ने जब देश में आपातकाल लगाया तो वो भी जेल गए. जब बाहर आए तो नई पहचान और लंबा राजनीतिक सफ़र उनका इंतज़ार कर रहा था.
रामपुर को नवाबों का शहर कहा जाता है. इन्हीं नवाबों के साए में आज़म ख़ान ने रामपुर में अपनी राजनीतिक सरगर्मियां शुरू कीं. 1980 में पहली बार विधायक का चुनाव जीता और अगले दशकों में रामपुर को अपने नाम का पर्याय बना लिया.
नीचे के लिंक पर जाकर बीबीसी द्वारा आजम खान के पूरे राजनीतिक कैरियर को उल्लेखित किया गया है जिसे उदाहरण के लिए देख सकते हैं।
https://www.bbc.com/hindi/india-61522786
"उत्तर प्रदेश में #यादवसमाज नेतृत्वविहीन है। Leaderless and Rudderless
यही कारण है कि भाजपा आरएसएस शासन लक्षित हत्याएं कर रहा है क्योंकि सरकार अच्छी तरह से जानती है कि समाजवादी पार्टी कभी भी सड़कों पर नहीं उतरेगी या केवल यादव पीड़ितों के नाम पर एक बड़ा आंदोलन शुरू नहीं करेगी।
क्योंकि #अखिलेशयादव के नेतृत्व वाली #समाजवादीपार्टी अपनी पहचान सिर्फ #यादव या #मुसलमान से नहीं रखना चाहती.
दरअसल, अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली समाजवादी पार्टी ने बहुत पहले ही संकेत दे दिया है कि पार्टी सभी जातियों के लिए खड़ी है.
यहां तक कि एक टेलीविजन साक्षात्कार में #2022uttarpradeshassemblypolls जब एक महिला एंकर ने Akhilesh Yadav से पूछा था कि वह एम-वाई वोटबैंक के साथ विधानसभा चुनाव कैसे जीतेंगे, तो अखिलेश ने कहा था कि उनके राजनीतिक शब्दकोष में वाई का मतलब युवा है, न कि यादव और एम का मतलब महिला है, न कि मुस्लिम।
पुलिस एनकाउंटर में मारे गए मंगेश यादव की माँ का इंटरव्यू सुनिए है. माँ ज्यादा पढ़ी लिखी नही है लेकिन उसे जाति वर्ण अव्यवस्था के विषय में JNU के किसी भी सवर्ण प्रोफेसर से ज्यादा ज्ञान है.
इस माँ को पता है अहीर और गड़ेरिया का समाज में सामाजिक स्तर किया है. इस माँ को पता है वो गरीब क्यों है, पीड़ित क्यों है और सरकारी तंत्र उनके खिलाफ क्यों है.
माँ को भली भांति पता है ठाकुरवाद और ब्राह्मणवाद का समाज पर आधिपत्य है. लेकिन समाजवादी पार्टी के नेताओं और पार्टी के मुखिया जाति पर बात करने से बचते हैं.
ये लोग दलित दलित ऐसे करते हैं जैसे खुद ठाकुर और बाभन हैं. मैं यहां किसी के पक्ष या खिलाफ नही लिख रहा हूँ. मैं केवल हकीकत बता रहा हूँ.
बहुजन समाज के पत्रकारों को माता जी को PodCast में बुलाना चाहिए. वो जातीय वर्ण अव्यवस्था पर चिंतन और मंथन कर सकती हैं."
काश आप लोगों की यही सोच और हमदर्दी समाजवादी पार्टी को अपने कंधो के सहारे आगे बढ़ने वाले नेता माननीय आजम खां साहब के प्रति दिखाई या लिखी गई होती तो आज आजम खां साहब इतने कमजोर और बेसहारा न दिखते और उनका ये हाल न होता।
लियाकत अंसारी-
सर, यह समय दुख या अफसोस जताने का नहीं है। बॉस, हमारे राष्ट्रीय अध्यक्ष और पार्टी के सभी बड़े-छोटे नेताओं को एक भाषा और एक आवाज चाहिए, अलग-अलग भाषाएं नहीं।