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प्रधानमंत्री के कडे़ तेवर के बाद नरम पड़े मुलायम सिंह
लखनऊ/नई दिल्ली, एजेंसी
First Published:29-03-13 09:12 PM
Last Updated:29-03-13 11:37 PM
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समाजवादी पार्टी (सपा) के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने शुक्रवार को यहां कहा कि फिलहाल केंद्र की संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार से समर्थन वापस लेने का उनका कोई इरादा नहीं है।
मुलायम ने इसके पहले दिल्ली में भी सीएनएन-आईबीएन के साथ एक विशेष बातचीत में कहा कि वह संप्रग सरकार से समर्थन वापस नहीं लेंगे, क्योंकि साम्प्रदायिक ताकतों को सत्ता से दूर रखने के लिए यह उनकी राजनीतिक मजबूरी है।
मुलायम ने कहा, ''यह (कांग्रेस को समर्थन देना) एक राजनीतिक मजबूरी है। हम साम्प्रदायिक ताकतों (भाजपा) के खिलाफ लड़ रहे हैं। जब हम साम्प्रदायिक ताकतों से अकेले लड़ रहे थे, तब केवल चंद्रशेखर जी हमारे सम्पर्क में थे। अयोध्या (विवादित ढांचे को 1992 में ढहाए जाने) के बाद हमें देश की एकता बरकरार रखनी थी। अन्यथा मुसलमान यह सोचते कि हमारे साथ कोई नहीं है।''
ज्ञात हो कि मुलायम का यह बयान ऐसे समय में आया है, जब एक दिन पहले गुरुवार को दक्षिण अफ्रीका के डरबन से लौटते वक्त प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने मीडियाकर्मियों से बातचीत में साफतौर पर कहा था कि केंद्र सरकार पूरी तरह से स्थिर है और वह अपना कार्यकाल पूरा करेगी।
मुलायम ने यहां लखनऊ में मीडियाकर्मियों से बातचीत के दौरान कहा, ''संबंधों में कड़वाहट नहीं आई है। मुझे नहीं पता कि प्रधानमंत्री ने इस तरह का बयान क्यों दिया है। केंद्र सरकार से समर्थन वापसी को लेकर पार्टी के भीतर कोई चर्चा नहीं हुई है। अभी केंद्र सरकार से फिलहाल समर्थन लेने का कोई इरादा नहीं है।''
मुलायम ने कहा, ''हम समर्थन वापस लेकर सरकार क्यों गिराएं जब महज आठ-नौ महीने ही बचे हैं।''
मुलायम ने एक तरफ  तो केंद्र से समर्थन वापस न लेने की बात कही, वहीं दूसरी ओर उन्होंने केंद्र सरकार को घोटालों की सरकार भी करार दिया। उन्होंने कहा कि अगर समय पर वह केंद्र सरकार को नहीं बचाते तो यह सरकार कब की गिर गई होती।
उन्होंने कहा, ''सभी घोटाले केंद्र सरकार की देन हैं। चुनाव के बाद अगली सरकार बिना हमारे सहयोग की नहीं बनेगी। मैंने किसी को धोखा नहीं दिया, बल्कि हमेशा मुझे ही धोखा दिया गया है।''
मुलायम ने हालांकि इस दौरान बेनी प्रकरण की याद दिलाते हुए कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी की तारीफ  भी की।
सीएनएन-आईबीएन के साथ एक विशेष बातचीत में मुलायम ने यह अनुमान भी लगाया कि अप्रैल-मई 2014 में प्रस्तावित आम चुनाव नवम्बर 2013 तक ही हो सकता है।
मुलायम ने कहा, ''मई में चुनाव नहीं होगा। चुनाव पहले होगा। यह विेषण है.. चुनाव इसी वर्ष होगा, हो सकता है नवम्बर में हो। सभी दलों की चुनावी प्रक्रिया शुरू हो चुकी है।''
मुलायम ने इस बात से इंकार किया कि वह भाजपा के करीब जा रहे हैं। उन्होंने कहा, ''भाजपा के करीब जाने का क्या मतलब? यदि हमने किसी के साथ लड़ा है तो वह आडवाणी जी हैं। जब हम भाजपा के खिलाफ लड़ रहे थे, तो कांग्रेस मूकदर्शक खड़ी थी।''
सपा नेता ने कहा, ''लोगों ने आडवाणी जी पर मेरे बयान की प्रशंसा की है। लेकिन आश्चर्य कि कांग्रेस और भाजपा के नेता मेरी आलोचना कर रहे हैं।''
मुलायम ने कहा कि प्रधानमंत्री बनने की उनकी कोई महत्वाकांक्षा नहीं है। उन्होंने अलबत्ता तीसरे मोर्चे की आशा जाहिर की, जिसे कांग्रेस और भाजपा, दोनों खारिज कर चुके हैं।
मुलायम ने कहा, ''प्रधानमंत्री बनने की मेरी कोई महत्वाकांक्षा नहीं है।''
मुलायम ने आगे कहा, ''जब भी तीसरा मोर्चा अस्तित्व में आया है, इसके गठन के बारे में किसी को भी अंदाजा नहीं रहा। यह अपने आप बना है। मैं समझता हूं कि इस बार भी ऐसा ही होगा। कई पार्टियां हमारे साथ आएंगी।''
मुलायम ने कहा, ''चुनाव बाद यदि स्थिति की मांग होती है, तो पार्टियां एकजुट हो सकती हैं और तीसरा मोर्चा बन सकता है। तीसरा मोर्चा हमेशा चुनाव बाद अस्तित्व में आया है।''
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हिन्दुस्तान से साभार 


मुलायम सिंह की पांच उलटबांसियां

 शुक्रवार, 29 मार्च, 2013 को 10:18 IST तक के समाचार
मुलायम सिंह यादव
समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह यादव ने काँग्रेस को धोखेबाज़ और चालाक पार्टी बताया है, लेकिन ऐसे कई उदाहरण हैं जब ख़ुद उन्होंने अपने अगले राजनीतिक क़दम की हवा नहीं लगने दी है और बदलती हवा का रुख़ भाँपकर दोस्तों को दुश्मन और दुश्मनों को दोस्तों की जमात में डाल दिया.

चौधरी चरण सिंह

मुलायम सिंह यादव यूँ तो बचपन से पहलवानी करते रहे हैं पर राजनीति के अखाड़े में कई दाँव-पेंच उन्होंने राममनोहर लोहिया और चौधरी चरण सिंह से सीखे. उन्हीं के साथ मुलायम ने काँग्रेस-विरोधी राजनीति की धार को और तीखा किया.
चौधरी चरण सिंह ने उनको उत्तर प्रदेश की राजनीति में जड़ें जमाने में काफ़ी मदद की. मुलायम सन 1967 में पहली बार राम मनोहर लोहिया के नेतृत्व वाली संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी (संसोपा) के टिकट पर विधायक चुने गए. पर लोहिया की मृत्यु के तुरंत बाद 1968 में वो चौधरी चरण सिंह के नेतृत्व वाली भारतीय क्रांति दल में शामिल हो गए.
बाद में संसोपा और भारतीय क्रांति दल का विलय करके भारतीय लोकदल बनाया गया. मुलायम सिंह ने इस पार्टी पर अपनी पकड़ मज़बूत की और 1977 में जब बीएलडी का जनता पार्टी में विलय हुआ तो मुलायम सिंह मंत्री बन गए.
पर उन्होंने चरण सिंह की मृत्यु के बाद उनके बेटे अजित सिंह का नेतृत्व स्वीकार करने से साफ़ इनकार कर दिया और भारतीय लोकदल को तोड़ दिया.

चंद्रशेखर

"चंद्रशेखर बहुत ग़ुस्से में थे और उन्होंने सेंट्रल हॉल से निकलते हुए पत्रकारों से कहा कि अपने ही सबसे ज़ोर से हमला करते हैं."
अदिति फड़निस, वरिष्ठ पत्रकार
सन 1989 के चुनावों में राजीव गाँधी का करिश्मा उतार पर था और ये माना जा रहा था कि वो चुनाव नहीं जीत पाएँगे. बोफ़ोर्स कांड के आरोपों ने उनकी स्थिति और ख़राब कर दी थी.
ऐसे में विश्वनाथ प्रताप सिंह ने काँग्रेस से बग़ावत कर दी. चुनाव के बाद जनता दल की सरकार बनाने की क़वायद शुरू हुई. लेकिन चुनौती तब पैदा हुई जब चंद्रशेखर ख़ुद प्रधानमंत्री बनने के लिए जोड़-तोड़ करने लगे.
उस वक़्त के दूसरे खुर्राट नेता देवीलाल उस समय विश्वनाथ प्रताप सिंह के साथ थे. तब मुलायम सिंह यादव उत्तर प्रदेश के उभरते राजनेता थे और चंद्रशेखर के साथ खड़े थे.
मगर ऐन वक़्त पर मुलायम पलटे और देवीलाल के साथ चले गए. चंद्रशेखर टापते रह गए और वीपी सिंह प्रधानमंत्री बन गए. वरिष्ठ पत्रकार अदिति फड़निस उस दिन को अब भी याद करती हैं.
उन्होंने बीबीसी से कहा, “चंद्रशेखर बहुत ग़ुस्से में थे और उन्होंने सेंट्रल हॉल से निकलते हुए पत्रकारों से कहा कि अपने ही सबसे ज़ोर से हमला करते हैं."

वामपंथी

कम्युनिस्ट पार्टी का झंडा
वामपंथी पार्टियाँ मुलायम सिंह यादव को भरोसे का राजनेता नहीं मानतीं.
बाबरी मस्जिद ध्वंस से पहले और उसके बाद मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी पार्टी को मुसलमानों की ख़ैरख़्वाह पार्टी के तौर पर पैर जमाने में मदद की.
उस दौर में, और एक मायने में अब भी, बहुतेरे मुसलमान मुलायम को अपने नेता के तौर पर देखते हैं. संघ परिवार के ख़िलाफ़ मुलायम के कड़े रुख़ के कारण वामपंथी भी उन्हें अपने मित्र के तौर पर देखते थे.
लेकिन अमरीका से नागरिक परमाणु समझौते के मुद्दे पर जब वामपंथियों ने मनमोहन सिंह की जान सांसत में डाली और समर्थन वापिस ले लिया तो विचारधारा जैसी बातों से पल्ला झाड़कर मुलायम सिंह यादव ने मनमोहन सिंह की सरकार को गिरने से बचा लिया.
पत्रकार अदिति फड़निस कहती हैं कि इसी कारण वामपंथी मुलायम सिंह को विश्वसनीय नहीं मानते. राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि सोनिया गाँधी भी मायावती को मुलायम सिंह के मुक़ाबले ज़्यादा विश्वसनीय मानती है.

ममता बनर्जी

हाल ही में राष्ट्रपति चुनाव के दौरान मुलायम सिंह यादव ने ऐतिहासिक पलटी मारी.
जब ममता बनर्जी तीखे तेवर दिखा रही थीं, तब मुलायम सिंह यादव ने यूपीए सरकार की कँपकँपी को बढ़ाते हुए ममता के साथ संयुक्त प्रेस कॉनफ़्रेंस की और इस तरह के संकेत दिए कि यूपीए के लिए राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार तय करना आसान नहीं होगा.
उन्होंने पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी के नाम राष्ट्रपति पद के लिए प्रस्तावित किए थे.
लेकिन दो दिन बाद ही मुलायम सिंह यादव इस बात को भूल गए और ममता बनर्जी को ग़च्चा देकर यूपीए के उम्मीदवार प्रणब मुखर्जी को समर्थन करने की घोषणा कर दी.
ममता बनर्जी
मुलायम सिंह के दाँवपेंच का स्वाद ममता बनर्जी भी चख चुकी हैं.
बाद में जब उनसे पूछा गया कि दो दिन पहले ही उन्होंने तीन अलग नाम सुझाए थे जिनमें मनमोहन भी शामिल थे, तो मुलायम सिंह ने ये कहकर किनारा कर लिया कि वो सिर्फ़ सुझाव था.

और अब यूपीए

ऐसा नहीं है कि यूपीए के मैनेजर मुलायम सिंह यादव पर किसी भी तरह से भरोसा करते हों. ये बात ठीक है कि समाजवादी पार्टी ने मनमोहन सिंह की डाँवाडोल सरकार को गिरने से बचाया था, लेकिन बहुत कम लोग ये मानते हैं कि इस सहारे की मुलायम सिंह ने कोई (राजनीतिक) क़ीमत वसूल नहीं की होगी.
मुलायम सिंह का साथ छोड़कर काँग्रेस में शामिल हुए बेनी प्रसाद वर्मा से बेहतर इस बात को कोई नहीं जानता कि मुलायम सिंह ने अपनी राजनीतिक पार्टी के हित को किस तरह विचारधारा और सिद्धांत से हमेशा ऊपर रखा है.
दोनों भारतीय लोकदल के ज़माने से ही साथ में थे और दोनों ने ही मिलकर चौधरी चरण सिंह के बेटे अजित सिंह को किनारे कर दिया था. लेकिन बेनी प्रसाद वर्मा को पिछले दशक के बीच में एहसास हो गया कि मुलायम नामक वटवृक्ष के साए में वो पनप नहीं पाएँगे.
इसीलिए वो समाजवादी पार्टी से निकल आए.
पत्रकार अदिति फड़निस कहती हैं कि ये बात माननी पड़ेगी कि मुलायम सिंह यादव लोगों की नब्ज़ को जानते हैं और वो हमेशा धरती से जुड़े रहते हैं.
इसीलिए एक बार उन्होंने मुस्लिम वोट बैंक के ख़जांची समझे जाने वाले मौलाना अब्दुल्ला बुख़ारी को नपे तुले शब्दों में जवाब दे दिया था कि आपका काम मस्जिद के अंदर है, बाहर राजनीति का काम हमारा है और हम उसे करेंगे.
इस बयान के बावजूद मुसलमानों का समर्थन और वोट मुलायम सिंह यादव को मिला और वो जीते.

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बीबीसी से साभार 

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