मंगलवार, 4 सितंबर 2012

सामाजिक बदलाव की पहल ? क्या और घरेलू हिंसा इससे बढ़ने की संभावनाएं तो नहीं बढ़ जायेगी -


...तो पति की सैलरी से पत्नी को मिलेगा हिस्सा

नई दिल्ली/ब्यूरो
Story Update : Wednesday, September 05, 2012    2:01 AM
wife will get part of husband salary
अपने काम को तवज्जो न मिलने का रोना रोनी वाली गृहणियों के लिए एक खुशखबरी है। अगर महिला और बाल विकास मंत्रालय की पहल अमल में आ गई तो गृहणियों को अपने पति के वेतन से एक निश्चित हिस्सा मिलेगा।

मंत्रालय घरेलू महिलाओं को सप्ताह में एक दिन छुट्टी देने और पति के वेतन में से कुछ हिस्सा मिलने संबंधी सर्वोच्च न्यायालय की एक टिप्पणी को अमली जामा पहनाने की तैयारी में है। मंत्रालय एक ऐसा प्रस्ताव तैयार कर रही है जिससे पतियों को अपने वेतन से एक निश्चित हिस्सा पत्नियों को देना होगा। मंत्रालय इस प्रस्ताव को अंतिम रूप देकर जल्द कैबिनेट में पेश करना चाहता है।

माना जा रहा है कि अगले एक वर्ष में इसे लागू कर दिया जाएगा। प्रस्ताव के कानून बनते ही पति को प्रत्येक माह अपने वेतन का एक निश्चित हिस्सा तनख्वाह के रूप में पत्नी को देना जरूरी हो जाएगा। फिर चाहे आपकी आय कुछ भी हो। लोअर ग्रेड से लेकर मोटी पगार पाने वाले सभी सरकारी और निजी क्षेत्र के कर्मचारी इस दायरे में आ सकते हैं।

महिला एवं बाल विकास मंत्री कृष्णा तीरथ के मुताबिक यह प्रस्ताव महिला सशक्तीकरण की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा। हालांकि मंत्रालय की ओर से अभी यह साफ नहीं किया गया है कि कामकाजी महिलाओं को भी पति के वेतन से कुछ हिस्सा मिलना चाहिए या नहीं। जानकारों का कहना है कि सिर्फ घरेलू महिलाओं को ही इस प्रस्ताव से लाभ मिलता है तो करीब 90 फीसदी शादीशुदा महिलाओं को पति से पगार मिलने लगेगी।

शुक्रवार, 18 मई 2012

पिछड़ा वर्ग आन्दोलन एवं उ0प्र0 सरकार



पिछड़ा वर्ग आन्दोलन एवं उ0प्र0 सरकार
कौशलेन्द्र प्रताप यादव

प्रत्येक सरकार की कसौटी के पैमाने भी अलग-अलग होते हंै। दल का घोषणा पत्र जिस लोक लुभावन वादों के साथ और जिस वर्ग के वोट से सत्ता में आता है उन्हीं वादों पर सरकार को फेल-पास किया जाता है। मसलन बसपा की सरकार दलितों के लिए क्या कर रही है, इस पर सबकी नजर रहती थी। उसी प्रकार सपा सरकार पिछड़े वर्ग से संबंधित मुददों पर क्या रूख अख्तियार करती है और अपने कार्यकाल में क्या कुछ दे जाती है, इसी कसौटी पर उसको कसा भी जायेगा और यही रूख उसका भविष्य भी तय करेगा।
चित्र ;रत्नाकर 

प्रमोशन  में दलितों को आरक्षण का मुददा सब जगह छाया रहा। लेकिन यह तथ्य कहीं भी प्रकाश में लाने की कोशिश नहीं गई कि 1978 में जिस शासनादेश के तहत दलितों को प्रमोशन में आरक्षण की बात कही गई थी, उसी शासनादेश में अनुसूचित जातियों, जनजातियों के साथ अन्य पिछड़े वर्गों को भी प्रमोशन में आरक्षण की बात कही गई थी। इस शासनादेश के तहत अन्य पिछड़े वर्ग के तीन तेज तर्रार अधिकारियेां को प्रमोशन में आरक्षण भी मिला। लेकिन 30.9.1980 के शासनादेश संख्या 5119/40-1-1-15 (28) 80 के तहत अन्य पिछड़े वर्गों को मिलने वाला प्रमोशन में यह आरक्षण कांग्रेस की सरकार ने समाप्त कर दिया। फिलहाल यह संभव तो नहीं है कि उ0प्र0 सरकार दलितों का आरक्षण खत्म करे और ओ0बी0सी0 को प्रमोशन में आरक्षण दे, लेकिन अब इस मुददे पर ओबीसी संगठन बौखला गए हंै। 27 मई को लखनऊ में आल इंडिया बैकवर्ड इंपलाइज फेडरेशन (आइबेफ) इस मुददे पर एक अधिवेशन करने जा रहा है।

समाजवाद के जनक लोहिया जब ‘‘सोशलिस्टों ने बांधी गांठ पिछड़े पावैं सौ में साठ’’ नारा देते थे तब वो निजी क्षेत्रों में भी आरक्षण की वकालत करते थे। दूरदर्शी लोहिया जानते थे कि वक्त बीतने के साथ नौकरियां केवल सरकार के भरोसे नहीं रहेगी। यह भी कम मजे की बात नहीं कि जिस कांग्रेस को मजबूरी में मंडल आयोग की सिफारिशें लागू करनी पड़ी उसी ने देश में उदारीकरण की शुरूआत की। उदारीकरण के फलस्वरूप बहुत कम नौकरियां सरकार के पास बची और निजी क्षेत्र में आरक्षण देना कांग्रेस की कोई मजबूरी नहीं थी। बसपा सरकार ठेकों में भी दलितों को आरक्षण देती थी। सपा सरकार आसानी से यह व्यवस्था पिछड़े वर्ग के लिए कर सकती है।

अखिलेश जी ने बयान दिया है कि उनकी सरकार में न तो कोई स्मारक बनेगा और न ही कोई मूर्ति लगेगी। लेकिन प्रदेश में एक भी पिछड़ा वर्ग शोध केन्द्र नहीं है। जहां पर पिछड़े वर्ग की योजनाओं, जनसंख्या, कर्मचारियों का प्रतिशत, आरक्षण की प्रगति, दूसरे प्रदेशों में चल रही पिछड़े वर्ग की योजनायें, संसद और अन्य राज्यों में पिछड़े वर्ग के सांसदों और विधायकों की स्थिति की नवीनतम जानकारी रखी जा सकी।

उ0प्र0 में गैर सरकारी स्तर पर पिछड़ा वर्ग आंदोलन मृत प्राय है। कभी यहां अर्जक संघ का जीवंत आंदोलन था। रामस्वरूप वर्मा, ललई सिंह यादव और महाराज सिंह भारती इसके प्रेरणापुंज थे। लेकिन अर्जक आंदोलन उ0प्र0 में उसी तरह मर गया जैसे बिहार में त्रिवेणी संघ। मा0 कांशीराम गैर राजनैतिक आंदोलन की महत्ता बखूबी समझते थे। वो कहते थे कि ‘‘कोई समाज राजनीति में कितना आगे जायेगा, यह इस पर निर्भर करता है कि उसकी गैर राजनैतिक अर्थात सामाजिक जड़े कितनी मजबूत है?’’ देखना होगा कि उ0प्र0 सरकार ऐसे गैर राजनैतिक आंदोलनों को अपने लिए सहायक मानती है कि खतरा ?

पिछड़े वर्ग के पास पत्रिका आंदोलन का भी अभाव है। दरअसल पिछड़ा वर्ग जिन मार्शल जातियों से मिलकर बनता है, वहां चिंतन की गुंजाइश बहुत कम होती है। इसलिए पिछड़े वर्ग के नेतृत्व में जहां-जहां सरकारें बनती है, वो अपने दड़बे से बाहर नहीं निकल पाती और असमय काल-कवलित हो जाती हंै। दलित आंदोलन लघु पत्रिका आंदोलन की उपज था। 2 रुपये से लेकर 20 रुपये तक की दलित पत्रिकायें निकालना दलितों के बीच एक फैशन बन गया था। भले ही ये दस पेज की रही हांे या इनकी प्रसार संख्या पांच सौ से भी कम रही हो, लेकिन अपने प्रभाव क्षेत्र में इन्होंने दलितों में जबरदस्त जनजागरण पैदा किया। इस समय उ0प्र0 में पिछड़े वर्ग की एक मात्र पत्रिका है सोशल ब्रेनवाश। देखना है उ0प्र0 सरकार इसे कैसे प्रोत्साहित करती है।

सपा के सत्ता में आने के बाद अति पिछड़े वर्ग के लोग उफान पर है। ये अपने लिए अलग कोटा और एक अलग आयोग की मांग कर रहे है। दरअसल अति पिछड़े वर्ग का आक्रोश समझने में गैर सपा राजनैतिक दल ज्यादा सफल रहे हंै। राजनाथ सिंह ने अपने मुख्यमंत्रित्व काल में आरक्षण को पिछड़ा/अति पिछड़ा में बांटा तो बसपा सरकार अतिपिछड़े वर्ग की कुछ जातियों को थोक के भाव अपने साथ ले गई। इसी प्रकार पिछड़े वर्ग के मुसलमानों यानी पसमांदा मुसलमानों पर सपा अपना स्टैंड क्लीयर नहीं कर पा रही है। उसने समस्त मुसलमानों के लिए आरक्षण की मांग की है। जिसका पसमांदा मुसलमानों की कई तंजीमों ने विरोध किया है। यदि अति पिछड़े वर्ग के साथ पसमांदा मुसलमानों को सपा अपने पाले में खींच ले गई तो यह उसका सबसे बड़ा बेस वोट बैंक होगा।

क्रीमीलेयर को लेकर पिछड़े वर्ग के चिंतक अपना विरोध जताते रहे हंै। अभी सुप्रीम कोर्ट ने प्रमोशन में दलितों का आरक्षण समाप्त किया तो इस निर्णय को निष्प्रभावी करनेके लिए संसद में विशेष प्रस्ताव पारित करने की तैयारी चल रही है। पिछड़े वर्ग को आरक्षण में क्रीमीलेयर भी सुप्रीम कोर्ट की व्यवस्था है। किन्तु उसे हटाने की कोई मुहिम अभी तक नहीं की गई। उ0प्र0 के सपा सांसद क्रीमीलेयर को हटाने के लिए विधान सभा से एक प्रस्ताव पारित करा सकते है या ससंद के किसी भी सदन में इस आशय का एक प्रस्ताव रख सकते है।
अभी उ0प्र0 का जो मंत्रिमंडल है उसमें पिछड़े वर्ग का चेहरा नहीं झलक रहा है। सपा के पितृ-पुरूष चैधरी चरण सिंह का अजगर (अजीर-जाट-गूजर-राजपूत) फार्मूला भी इसमें गायब है। मंडल आयोग लागू होने के बावजूद केन्द्र सरकार की नौकरियों में पिछड़े वर्ग की भागीदारी केवल 6 प्रतिशत है। उ0प्र0 में भी पिछड़े वर्ग को 27 प्रतिशत आरक्षण मिला है, लेकिन यहां भी उसे 10 प्रतिशत ही प्रतिनिधित्व प्राप्त है। आरक्षण मिलने के बवजूद पिछड़े वर्ग के साथ केन्द्र और राज्य स्तर पर यह अन्याय क्यों है रहा है, इस पर सपा सरकार को जमकर स्टैंड लेना होगा। ओबीसी के जो पद रिक्त पड़े हैं, उसे लेकर सपा को जबरदस्त भर्ती अभियान चलाना पड़ेगा तभी पिछड़े वर्ग को आरक्षण के अनुपात में नौकरियां मिल सकेगी।
उ0प्र0 में ओबीसी के छा़त्रों के लिए छात्रावास की अलग से कोई व्यवस्था नहीं है। जिले में यदि 200 छात्रों के लिए भी एक छात्रावास बना दिया जाये तोा ये पिछड़ा वर्ग आंदोलन के एक चेतना केन्द्र हो सकते हैं और साथ ही पिछड़ा वर्ग का एक कैडर तैयार हो सकेगा। दलित छात्रों के लिए शोध हेतु केन्द्र सरकार राजीव गांधी फेलोशिप देती है। उ0प्र0सरकार को ऐसी ही एक योजना ओबीसी छात्रों के लिए शुरू करनी चाहिये।

चूंकि उ0प्र0 सरकार पिछड़े वर्ग का प्रतिनिधित्व करती है, अतः दलित स्मारकों को लेकर उसका स्टैंड प्रदेश में दलितों-पिछड़ों के रिश्ते तय करेगा। यह गौरतलब है कि इस बार सपा ने अनुसूचित जाति के सुरक्षित 89 सीटों में 54 सीटे जीती है। यह सपा पर दलितों का नया एतबार है। सपा के आदर्श लोहिया खुद अंबेडकर के बहुत बड़े प्रशंसक थे। जब उन्होंने बिहार के रामलखन चंदापुरी के साथ मिलकर पिछड़े वर्ग को गोलबंद किया तो पिछड़े वर्ग के साथ दलितों के गठबंधन का सपना देखा। यह सपना लिये लोहिया अंबेडकर के पास पहुंचे और एक सार्वजनिक बयान दिया कि ‘‘गांधी के निधन के बाद यदि कोई महान है तो अंबेडकर है और जाति विनाश अभियान की आशा के केन्द्र है।’’ इसके बाद लोहिया और अंबेडकर की मुलाकातें बढ़ चलीं लेकिन बाबा साहब अंबेडकर का इसी समय असमय निधन हो गया और लोहिया का दलित-पिछड़ा गठबंधन का स्वप्न अधूरा रह गया।

आज का जो सामाजिक परिदृश्य है और देश जिस प्रकार जाति मुक्त भारत की ओर बढ़ रहा है, उसमें जातीय और वर्गीय आंदालनों की गुंजाइश बहुत कम रह गई हंै। इसीलिए मंडल के प्रोडक्ट नीतीश कुमार को मंडल की राजनीति छोड़कर विकास और सुशासन का लबादा ओढ़ना पड़ता है, उ0प्र0 में बहन जी को बहुजन से सर्वजन की यात्रा करनी पड़ती है, गुजरात में महानतम संघी नरेन्द्र मोदी को सदभावना यात्रा करनी पड़ती है। लेकिन चतुर राजनेता वही है जो सब कुछ करते हुए, सबको खुश रखते हुए अपना बेस वोट बैंक मजबूत रख सके। इसी बिंदु पर अखिलेश जी की भी कड़ी अग्नि परीक्षा होगी। 
अंत में एक बात और। हो सकता है कि अखिलेश जी अपने को पिछड़े वर्ग का नेता न मानते हों, लेकिन पिछड़ा वर्ग उनसे उम्मीद जरूर करता है।

परिचयः लेखक आॅल इंडिया बैकवर्ड इंपलाइज फेडरेशन के राष्ट््रीय अध्यक्ष हैं। 
पता हैः टी-6,महादेवपुरम,मंडावर रोड,बिजनौर,उ0प्र0

http://obcofindia.blogspot.in/

सोमवार, 14 मई 2012

http://www.youtube.com/watch?v=PpxmMeXJlgo


सामाजिक बदलाव

सामाजिक बदलाव के इस दौर में जातीय एकता होना एक आवश्यक जरूरत बन गया है, 
पर सामाजिक समरसता को विखंडित करने वाली जातीय स्वार्थ से ऊपर न उठने वाली 
जातियां आज जिंन सरोकारों की बात करती हैं वे कितने बेमानी लगते हैं । 
http://www.youtube.com/watch?v=PpxmMeXJlgo

जातिवादियों की गुहार


जातिवादियों की गुहार

जाति के बंधन से ऊपर उठकर करें समाज का विकास
May 15, 01:52 am
जौनपुर: सामन्तवादी मानसिकता से निकलकर समाज के हितों का ख्याल हमारा उद्देश्य होना चाहिए। जब समाज खुशहाल होगा तब हम खुशहाल होंगे। जाति-बिरादरी के बंधन से ऊपर उठकर व्यापक दृष्टिकोण रखते हुए समाज के हित और विकास के लिए सतत् प्रयत्‍‌नशील रहना ही हमारा नैतिक दायित्व बनता है।
उक्त विचार वरिष्ठ भाजपा नेता एवं पूर्व प्रदेश अध्यक्ष भारतीय जनता पार्टी सूर्य प्रताप शाही ने मुफ्तीगंज विकास खण्ड स्थित निशान गांव में स्व.उमाशंकर राय के आवास पर आयोजित भूमेश्वर समाज के एक दिवसीय सम्मेलन पर आयोजित कार्यक्रम पर व्यक्त किया। सम्मेलन में भगवान परशुराम का जन्मदिवस को मास दिवस के रूप में बृहद रूप मनाया गया तथा भगवान परशुराम के बताए रास्ते पर चलकर देश और समाज के विकास के प्रति भागीदारी सुनिश्चित करने का व्रत लिया गया।
कार्यक्रम का शुभारम्भ मुख्य अतिथि द्वारा भगवान परशुराम एवं भूमेश्वर समाज के पूर्व अध्यक्ष उमाशंकर राय के चित्र पर माल्यार्पण के साथ हुआ। तत्पश्चात भूमेश्वर समाज के अध्यक्ष विनोद राय, महामंत्री अमरनाथ राय, मीडिया प्रभारी विद्याधर राय विद्यार्थी सहित सभी पदाधिकारियों, दीनानाथ राय, इन्द्र भूषण राय, रवि प्रकाश राय, सुग्रीव राय, कृष्ण अवतार राय, दशरथ राय, उदय प्रकाश राय आदि द्वारा मुख्य अतिथि को माल्यार्पण कर स्वागत किया गया। लालसा राय द्वारा मुख्य अतिथि को भगवान परशुराम की तस्वीर स्मृति चिन्ह स्वरूप भेंट की गयी। विशिष्ट अतिथि पीके सिन्हा को समाज के अध्यक्ष विनोद राय ने स्मृति चिन्ह भेंट किया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे अरुण कुमार राय ने भूमिहार समाज को एकजुट होकर समाज के हित के कार्य करने का संदेश दिया। इसी क्रम में डा.आरपी राय, डा.अलका राय, रामजी राय, जगदीश राय, लालसा राय, सदानन्द राय, कृष्णानंद राय आदि उपस्थित सजातीय बंधुओं को सम्बोधित किया गया तथा समाज के हित में कार्य करने को प्रेरित किया गया।
कार्यक्रम का संचालन अभिलेश पाण्डेय द्वारा किया गया। देर रात तक कवि सम्मेलन का आयोजन भी किया गया, जिसमें हरीनारायण, रामकिशोर तिवारी, सुनैना त्रिपाठी, डा.कमलेश राय, फजीहत गहमरी आदि ने एक से बढ़कर एक रचनाएं सुनाकर लोगों को भाव विभोर कर दिया। अंत में आए हुए आगंतुकों के प्रति समाज के संरक्षक जगदीश राय द्वारा धन्यवाद ज्ञापित कर कार्यक्रम का समापन किया गया।
(दैनिक जागरण जौनपुर से उधृत)
सामाजिक बदलाव के इस दौर में जातीय एकता होना एक आवश्यक जरूरत बन गया है, पर सामाजिक समरसता को विखंडित करने वाली जातीय स्वार्थ से ऊपर न उठने वाली जातियां आज जीन सरोकारों की बात करती हैं कितने बेमानी लगते हैं । 

बुधवार, 9 मई 2012

समाजवादी आंदोलन


समाजवादी आंदोलन के स्तंभ परभू बाबू नहीं रहे

Story Update : Thursday, May 10, 2012     1:58 AM
वाराणसी। जीवन के अंतिम क्षणों तक सिद्धांत की खातिर संघर्ष करने वाले लोहिया की राजनीतिक विरासत के मालिक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी प्रभुनारायण सिंह का निधन हो गया। लोगों के ‘परभू बाबू’ और अपने प्राइमरी स्कूल सहपाठी शहनाई के उस्ताद भारतरत्न बिस्मिल्लाह खां के ‘गुल्लू बाबू’ ने बुधवार की सुबह 10.14 पर आखिरी सांस ली। गिरती तबियत के चलते उन्हें चार मई को अस्पताल में भर्ती कराया गया था। मंगलवार की रात को वह काशीपुरा स्थित आवास पहुंचे और अगले दिन उनका निधन हो गया। उनकी अवस्था 93 वर्ष हो रही थी।
उनके परिवार में पत्नी दयावंती देवी, तीन पुत्र अशोक सिंह, अरविंद सिंह, आलोक सिंह और तीन पुत्रियां हैं। शाम तक उनके घर में शोक संवेदना व्यक्त करने वालों का तांता लगा रहा। काशीपुरा और रामकटोरा में बाजार बंद हो गया। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव, पूर्व राज्यपाल मोतीलाल बोरा, माखन लाल फोतेदार सहित तमाम हस्तियों ने शोक संवेदन व्यक्त की। अंतिम संस्कार गुरुवार को सुबह नौ बजे मणिकर्णिका घाट पर किया जाएगा।
काशी विश्वनाथ मंदिर में दलितों के प्रवेश के लिए 48 दिनों तक सत्याग्रह करने वाले, 11 नवंबर 1919 को जन्मे प्रभु बाबू ने 11 साल की उम्र में ही जेल जाने की कला सीख ली थी। वह ताजिंदगी शोषण और अन्याय के खिलाफ संघर्ष करते रहे। उन्होंने स्वातंत्र्य आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। भारत छोड़ो आंदोलन में उनपर पांच हजार का इनाम रखा गया था। उन्हें तीन साल की सजा मिली। रिहाई के बाद वह पहले काशी हिंदू विश्वविद्यालय पार्लियामेंट के प्रधानमंत्री फिर डिप्टी स्पीकर चुने गए। मिर्जापुर के अदलपुरा में कृषि योग्य जमीन के अधिग्रहण के खिलाफ किसानों के आंदोलन के समर्थन में उन्होंने नदेसर कोठी में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू का घेराव किया और लाठियां खाईं। लोकबंधु राजनारायण, मधुलिमये, कर्पूरी ठाकुर, रबी राय, जार्ज फर्नांडीज और नारायण दत्त तिवारी उनके अन्यतम संगी थे। लोकबंधु जितने उग्र थे, प्रभु बाबू उतने ही शांत। वे वर्ष 1952 में गोरखपुर स्थानीय निकाय का चुनाव लड़कर विधान परिषद में पहुंचे और अपने गुरु डा. राममनोहर लोहिया की चंदौली में 1957 में हुई हार का बदला 1959 के चुनाव में 40 हजार वोटों से जीतकर चुकाया। उन्होंने चित्रकूट में लोहिया की इच्छा के अनुरूप रामायण मेले की शुरुआत कराई। वह 1967 की संविद सरकार में उद्योग एवं श्रममंत्री, 1971 में त्रिभुवन सिंह के मुख्यमंत्रित्व में बनी सरकार में राजस्व मंत्री, वर्ष 1974 स्वास्थ्य मंत्री, उसके बाद 1975 में नारायण दत्त तिवारी के मंत्रिमंडल में स्वास्थ्य एवं कानून मंत्री बने। उन्होंने पूर्वांचल में नहरों और चिकित्सालयों का निर्माण कराया। बाद में पूर्वांचल राज्य के आंदोलन में भी सक्रिय भागीदारी की।


समाजवादी आंदोलन के स्तंभ परभू बाबू नहीं रहे

Story Update : Thursday, May 10, 2012     1:58 AM
वाराणसी। जीवन के अंतिम क्षणों तक सिद्धांत की खातिर संघर्ष करने वाले लोहिया की राजनीतिक विरासत के मालिक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी प्रभुनारायण सिंह का निधन हो गया। लोगों के ‘परभू बाबू’ और अपने प्राइमरी स्कूल सहपाठी शहनाई के उस्ताद भारतरत्न बिस्मिल्लाह खां के ‘गुल्लू बाबू’ ने बुधवार की सुबह 10.14 पर आखिरी सांस ली। गिरती तबियत के चलते उन्हें चार मई को अस्पताल में भर्ती कराया गया था। मंगलवार की रात को वह काशीपुरा स्थित आवास पहुंचे और अगले दिन उनका निधन हो गया। उनकी अवस्था 93 वर्ष हो रही थी।
उनके परिवार में पत्नी दयावंती देवी, तीन पुत्र अशोक सिंह, अरविंद सिंह, आलोक सिंह और तीन पुत्रियां हैं। शाम तक उनके घर में शोक संवेदना व्यक्त करने वालों का तांता लगा रहा। काशीपुरा और रामकटोरा में बाजार बंद हो गया। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव, पूर्व राज्यपाल मोतीलाल बोरा, माखन लाल फोतेदार सहित तमाम हस्तियों ने शोक संवेदन व्यक्त की। अंतिम संस्कार गुरुवार को सुबह नौ बजे मणिकर्णिका घाट पर किया जाएगा।
काशी विश्वनाथ मंदिर में दलितों के प्रवेश के लिए 48 दिनों तक सत्याग्रह करने वाले, 11 नवंबर 1919 को जन्मे प्रभु बाबू ने 11 साल की उम्र में ही जेल जाने की कला सीख ली थी। वह ताजिंदगी शोषण और अन्याय के खिलाफ संघर्ष करते रहे। उन्होंने स्वातंत्र्य आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। भारत छोड़ो आंदोलन में उनपर पांच हजार का इनाम रखा गया था। उन्हें तीन साल की सजा मिली। रिहाई के बाद वह पहले काशी हिंदू विश्वविद्यालय पार्लियामेंट के प्रधानमंत्री फिर डिप्टी स्पीकर चुने गए। मिर्जापुर के अदलपुरा में कृषि योग्य जमीन के अधिग्रहण के खिलाफ किसानों के आंदोलन के समर्थन में उन्होंने नदेसर कोठी में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू का घेराव किया और लाठियां खाईं। लोकबंधु राजनारायण, मधुलिमये, कर्पूरी ठाकुर, रबी राय, जार्ज फर्नांडीज और नारायण दत्त तिवारी उनके अन्यतम संगी थे। लोकबंधु जितने उग्र थे, प्रभु बाबू उतने ही शांत। वे वर्ष 1952 में गोरखपुर स्थानीय निकाय का चुनाव लड़कर विधान परिषद में पहुंचे और अपने गुरु डा. राममनोहर लोहिया की चंदौली में 1957 में हुई हार का बदला 1959 के चुनाव में 40 हजार वोटों से जीतकर चुकाया। उन्होंने चित्रकूट में लोहिया की इच्छा के अनुरूप रामायण मेले की शुरुआत कराई। वह 1967 की संविद सरकार में उद्योग एवं श्रममंत्री, 1971 में त्रिभुवन सिंह के मुख्यमंत्रित्व में बनी सरकार में राजस्व मंत्री, वर्ष 1974 स्वास्थ्य मंत्री, उसके बाद 1975 में नारायण दत्त तिवारी के मंत्रिमंडल में स्वास्थ्य एवं कानून मंत्री बने। उन्होंने पूर्वांचल में नहरों और चिकित्सालयों का निर्माण कराया। बाद में पूर्वांचल राज्य के आंदोलन में भी सक्रिय भागीदारी की।