सोमवार, 28 जनवरी 2013

मार्क्सवादी, न समाजवादी रामपुर में आजमवादी


मार्क्सवादी, न समाजवादी रामपुर में आजमवादी

 शुक्रवार, 2 मार्च, 2012 को 13:21 IST तक के समाचार
आज़म ख़ान
आज़म ख़ान एक समय समाजवादी पार्टी से निकाल दिए गए थे
साम्यवाद, मार्क्सवाद और समाजवाद तो सुना था लेकिन रामपुर में आजमवाद से भी पाला पड़ा. जवाद कमाल प्रॉपर्टी डीलिंग का काम करते हैं और खुद को आजमवादी कहते हैं. आजमवादी यानी आजम खान के समर्थक.
वो कहते हैं, "मैं पहले आजमवादी हूं फिर समाजवादी. आज़म खान ने रामपुर में जितना काम किया है उतना किसी ने नहीं किया. हम मुश्किल में हैं और चाहते हैं कि सपा की सरकार बने."
लेकिन ये आजमवादी होना क्या है. कमाल बताते हैं कि आज़मवाद तब का शब्द है जब आजम खान को समाजवादी पार्टी से निकाल दिया गया था.
तो क्या ये सिर्फ एक शब्द मात्र है. वो कहते हैं, "नहीं नहीं जी. पूरा एक दल था नौजवानों का जो बनाया गया था आजमवादी युवा मंच. ये आजम के पुरजोर समर्थक थे और जब आजम अकेले थे तब हम सभी उनके साथ थे."
लेकिन वो तो प्रापर्टी डीलर हैं उनको तो कोई दिक्कत ही नहीं होगी. कमाल बताते हैं कि उनका धंधा पांच साल से मंदा चल रहा है.

पैसे का जोर

लेकिन क्यों, वो कहते हैं, "मैं ये बात इसलिए नहीं कह रहा हूं क्योंकि मैं सपा समर्थक हूं लेकिन सच यही है कि हमारे जैसे छोटे प्रॉपर्टी डीलरों का काम ठप हो गया है. जमीन खरीदने बेचने की डील पर विभाग में बहुत पैसा मांगा जाता है. हालात ये हैं कि कोई भी जमीन आपके नाम हो सकती है अगर आप पैसा खर्च करने को तैयार हों तो."
मैं कुछ समझा नहीं, कमाल ने कहा कि वो मेरे नाम पर रामपुर में जो जमीन चाहे लिखवा सकते हैं बस जमीन का हक लेना मेरा काम होगा यानी कार्यालयों में पैसे के ज़ोर पर सब कुछ हो रहा है.
"मैं ये बात इसलिए नहीं कह रहा हूं क्योंकि मैं सपा समर्थक हूं लेकिन सच यही है कि हमारे जैसे छोटे प्रॉपर्टी डीलरों का काम ठप हो गया है. ज़मीन खरीदने बेचने की डील पर विभाग में बहुत पैसा मांगा जाता है. हालात ये हैं कि कोई भी ज़मीन आपके नाम हो सकती है अगर आप पैसा खर्च करने को तैयार हों तो"
जवाद कमाल
रामपुर में काफी विकास हुआ है लेकिन लोग सरकार से नाराज हैं. इतना ही नहीं आज़म खान को सपा से निकाले जाने और फिर वापस लेने के प्रकरण ने उन्हें एक बड़े नेता के रूप में स्थापित तो कर ही दिया है.
लेकिन मुझे नहीं पता था कि आजम खान इतने बड़े नेता हो गए हैं कि लोहियावाद की तरह आजमवाद भी चले. रामपुर के लोगों के लिए मोहम्मद आजम खान उनके ही नहीं पूरी क़ौम के और देश के नेता हैं.
आजम खान वही नेता हैं जिन्हें कल्याण सिंह के मुद्दे पर समाजवादी पार्टी से निकाला गया और बाद में मुलायम सिंह ने माफ़ी मांगकर उन्हें सम्मान से पार्टी में वापस लिया.

ताजमहल


ताजमहल गिराने के हिमायती आजम खान

 मंगलवार, 29 जनवरी, 2013 को 00:48 IST तक के समाचार
आजम खान
आजम खान पहले व्यक्ति नही हैं जिन्होंने ताजमहल के बारे इस तरह की आपत्ति दर्ज करायी है
उत्तर प्रदेश के नगर विकास, अल्पसंख्यक कल्याण, मुस्लिम वक्फ, हज एवं संसदीय कार्यमंत्री मोहम्मद आज़म खान ने आगरा के ताजमहल को एक तरह से जनता की गाढ़ी कमाई और सरकारी खजाने का दुरूपयोग करार दिया है.
रविवार को पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में एक सरकारी समारोह में भाषण देते हुए मोहम्मद आज़म खान ने 1992 के अपने पुराने बयान की याद दिलाई जब भारतीय जनता पार्टी और विश्व हिंदू परिषद अयोध्या की विवादित बाबरी मस्जिद के खिलाफ अभियान चला रहे थे.
उन्होंने अपना पुराना बयान दोहराते हुए कहा, "अगर लोग मस्जिद के बजाय ताजमहल गिराने चलें तो मैं उनसे आगे चलूँगा. इसलिए कि किसी भी हुक्मरान को आम आवाम के खजाने से अपनी महबूबा के लिए ताजमहल बनाने का हक नही दिया जा सकता.”
फिर उन्होंने शाहजाहाँ की तुलना मायावती से की और कहा कि अगर शाहजहां को यह हक नही दिया जा सकता तो फिर "मायावती को भी सरकारी खर्चे से अपनी मूर्ति लगाने का हक नही दिया जा सकता.”
याद दिला दें कि मायावती ने अपने साथ राजनीतिक गुरु कांशी राम की मूर्ति भी सरकारी खजाने से लगवाई थी.
याद दिला दें कि इससे पहले सन 2005 में जब शिया और सुन्नी समुदाय ने ताजमहल पर अपना मालिकाना हक़ जताया था तो उस समय आजम खान ने ताज महल को दो कब्रों वाला कब्रिस्तान बताया था.
लेकिन आजम खान कोई पहले व्यक्ति नही हैं जिन्होंने ताजमहल के बारे इस तरह की आपत्ति दर्ज करायी हो.
कभी साहिर लुधियानवी ने लिखा था, “इक शहंशाह ने बनवा के हसीं ताजमहल, हम ग़रीबों की मोहब्बत का उडाया है मजाक.”
वैसे शाहजहां के जमाने में भले ताज सरकारी खजाने की फिजूल खर्ची रहा हो, मगर अब तो ताजमहल से सरकार की कमाई भी होती है.
उपलब्ध जानकारी के अनुसार पिछले साल ताजमहल के टिकट से 70 करोड की कमाई हुई थी.

रविवार, 20 जनवरी 2013

महिला सशक्तिकरण और राजनीती


महिला सशक्तिकरण और राजनीती, मंत्री जी बहुत साफ कहते हैं, सो इन्होने असली बात कह ही दी .

हीरावती यादव ने ब्लाक प्रमुख का पद संभाला

Jaunpur | Last updated on: January 21, 2013 5:30 AM IST
बरसठी। ब्लाक परिसर में आयोजित भव्य समारोह में कैबिनेट मंत्री पारसनाथ यादव की पत्नी हीरावती देवी ने क्षेत्र पंचायत प्रमुख का पद संभाल लिया। शाही अंदाज में हीरावती की ताजपोशी हुई। जिले के सभी प्रमुख लोग हीरावती के शपथ ग्रहण समारोह का हिस्सा बने। मुख्य अतिथि मंत्री पारसनाथ यादव की मौजूदगी में हीरावती ने नई जिम्मेदारी संभाली। चार जनवरी को क्षेत्र पंचायत के उपचुनाव में हीरावती देवी निर्विरोध ब्लाक प्रमुख निर्वाचित घोषित की गई थीं। एसडीएम मड़ियाहूं शारदा प्रसाद यादव ने पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाई।
पशुधन एवं लघु सिंचाई मंत्री पारसनाथ यादव ने शपथ ग्रहण समारोह में कहा कि क्षेत्र की जनता यदि संघर्ष करती है तो क्षेत्र का विकास स्वयं हो जाता है। जनता को संघर्ष के लिए तैयार रहना चाहिए। मंत्री ने कहा कि वह कारोगांव में पैदा हुए लेकिन विधानसभा से लेकर संसद तक लोग उन्हें निगोह का निवासी समझते हैं। यह क्षेत्र के लोगों के लिए गर्व की बात है। बरसठी को माडल ब्लाक बनाने का वादा किया। यह बरसठी के लिए संयोग की बात होगी कि इस बार ब्लाक प्रमुख हीरावती देवी, मंत्री जगदीश सोनकर, सांसद तूफानी सरोज और वह खुद इसी क्षेत्र से आते है। मंत्री जगदीश सोनकर, सांसद तूफानी और ब्लाक प्रमुख हीरावती का यह निर्वाचन क्षेत्र है। हम इसी क्षेत्र के निवासी हैं। यह इस ब्लाक के लिए बड़ा संयोग है। मंत्री ने कहा कि हर अन्याय के खिलाफ लोकतांत्रिक तरीके से आवाज उठाएं। संघर्ष का मतलब खूनी संघर्ष से कतई नहीं। अपनी बात शालीनता से कहनी चाहिए। बरसठी की माटी सवर्णों की धरती है। सभी को मिलकर विकास करना है। समता और समानता के आधार पर ही विकास होगा। 
मंत्री ने कहा कि इस क्षेत्र की सबसे बड़ी सिंचाई समस्या है। सरकार सिंचाई संसाधनों को दुरुस्त कर रही है। यदि कहीं पानी नहीं पहुंचे तो तुरंत बताएं। इस दौरान सांसद तूफानी सरोज, राज्यमंत्री जगदीश सोनकर, सपा जिलाध्यक्ष राज बहादुर ने भी अपनी बात रखी। बीडीओ डा. दयाराम विश्वकर्मा तथा पशु चिकित्साधिकारी डा. अजय ने अंगवस्त्रम भेंटकर सम्मानित किया। संचालन बीडीओ डा. डीआर विश्वकर्मा ने किया। इस दौरान मड़ियाहूं विधायक श्रद्धा यादव, जफराबाद विधायक शचींद्र नाथ त्रिपाठी, पूर्व विधायक लाल बहादुर यादव, जावेद अंसारी, लकी यादव, सुरेंद्र यादव, सिकंदर अली, लाले यादव, नीलू सिंह, अरुण सिंह, सुधाकर दीक्षित, बाबा राम चौरसिया, राकेश सिंह, शेषनाथ यादव, भूपेश पांडेय, रमेश यादव, अयोध्या मिश्र, जितेंद्र सिंह, जगदीश गौतम, कर्मानंद यादव, चंदा सिंह आदि मौजूद थे।
बेटा खेवेगा ब्लाक प्रमुखी 
पशुधन एवं लघु सिंचाई मंत्री पारसनाथ यादव ने कहा कि आपकी प्रमुख केवल दस्तखत बनाना जानती हैं। इस नाते ब्लाक प्रमुख की मदद बड़ा बेटा लकी यादव करेगा। मंत्री ने बड़े साफ शब्दों में बता दिया कि ब्लाक प्रमुखी तो लकी यादव ही चलाएंगे।

गुरुवार, 17 जनवरी 2013

मुलायम की सरकार से नाराजगी बरकरार


मुलायम की सरकार से नाराजगी बरकरार

लखनऊ [जाब्यू]। सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव की सरकार से नाराजगी बरकरार है। गुरुवार को पार्टी की राज्य कार्यकारिणी की बैठक में उन्होंने मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और कई मंत्रियों की मौजूदगी में फिर अपना असंतोष जाहिर किया।
मुलायम ने कहा सरकार से जो उम्मीद थी, वह पूरी नहीं हो रही है। लोगों की समस्याएं नहीं सुलझायी जा रही है। कुछ लोग ऐसे हैं जो जनता के काम छोड़ और सारे काम कर रहे है। राष्ट्रीय महासचिव रामगोपाल यादव ने जोड़ा कि जमीनी कार्यकर्ताओं और संगठन के लोगों की भी सुनवाई नहीं हो रही है। मुख्यमंत्री और पार्टी प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भरोसा दिलाया कि एक हफ्ते के अंदर संगठन और सरकार दोनों में बदलाव दिखेगा।
बैठक में यह बात भी उभरी कि सरकार में नौकरशाही हावी है। मुख्यमंत्री सचिवालय के आदेशों पर भी अमल नहीं किया जा रहा है। यहां तक कहा गया कि केवल अफसरों के तबादलों से काम नहीं चलेगा, जो सही काम नहीं कर रहे हैं उन पर कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए। राज्य कार्यकारिणी की बैठक में पार्टी के दिग्गज नेताओं ने स्वीकारा कि जनता के बीच सरकार को लेकर जो संदेश जाना चाहिए था वह नहीं जा सका है। ऐसे में लोकसभा चुनाव में इसका नुकसान हो सकता है।
काम नहीं कर रहे तो हटाइए :
सरकार की ढिलाई की बात सामने आने पर सपा महासचिव नरेश अग्रवाल ने कहा कि काम नहीं हो रहा है यह कहने से बात नहीं बनेगी। अगर कोई मंत्री गड़बड़ है तो उसे बदल दीजिए। जो अफसर नहीं सुन रहे हैं, उन पर सख्त कार्रवाई करिए।
ब्यूरोक्रेसी में होगा बदलाव :
बैठक में बताया गया कि जल्द ही बड़े पैमाने में ब्यूरोक्रेसी में बदलाव होगा। खराब अधिकारियों को हटाया जाएगा। तर्क दिया गया कि अधिकारियों की कमी के कारण तमाम ऐसे अफसरों से काम चलाना पड़ रहा था जो बसपा के करीबी रहे थे। हाल ही में हुई प्रोन्नति से अब अधिकारियों की कमी दूर हो गयी है।
मुलायम ने दिया मंत्र :
मुलायम ने अखिलेश को मंत्र दिया कि मुख्यमंत्री की सफलता में मुख्य सचिव, पुलिस महानिदेशक, मुख्यमंत्री सचिवालय, इंटेलीजेंस प्रमुख और सूचना सचिव का काफी हाथ रहता है। ऐसे में इन पदों पर अच्छे और भरोसेमंद अफसर बहुत जरूरी होते हैं। यही अफसर मुख्यमंत्री के आंख-कान का काम करते हैं।
सरकार की ओर से संभाला मोर्चा :
मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने जहां जल्द ही बदलाव दिखने की बात कही वहीं वरिष्ठ मंत्री शिवपाल सिंह यादव व अहमद हसन ने मोर्चा संभालते हुए कहा कि सरकार संगठन की अपेक्षाओं पर खरी उतरेगी। तमाम चुनावी वादों को पूरा किया गया है और जो रह गए हैं वह भी जल्द पूरे किए जाएंगे।
युवा संगठनों को भंग करने से दिखे नाराज :
मुलायम इससे भी नाराज दिखे कि पार्टी के युवा संगठनों को भंग कर दिया गया है। उन्होंने कहा कि अच्छा होता कि जिन लोगों के खिलाफ शिकायत मिली थी, उन पर कार्रवाई की जाती।

शनिवार, 12 जनवरी 2013

समकालीन दौर की महिला नेत्रियाँ;

कितनी पढ़ी-लिखी हैं ममता-माया-जया? जानिए 10 महिला नेताओं के बारे में

कितनी पढ़ी-लिखी हैं ममता-माया-जया? जानिए 10 महिला नेताओं के बारे में
नई दिल्ली. देश की राजनीति में महिला नेताओं की खास जगह है। देश की सत्ताधारी पार्टी कांग्रेस से लेकर विपक्षी पार्टी बीजेपी की लोकसभा में नेता महिला ही हैं। लोकसभा अध्यक्ष के रूप में मीरा कुमार ने इतिहास रचा है। आइए, ऐसी कुछ महिला नेताओं के जीवन पर नज़र डालें, जो देश की राजनीति पर असर डाल रही हैं। 
 सोनिया गांधी 
 कांग्रेस और यूपीए की अध्यक्ष सोनिया गांधी देश ही नहीं, दुनिया की सबसे ताकतवर महिला राजनेताओं में शुमार हैं। सोनिया गांधी ने अपने पति और देश के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के कुछ सालों बाद नेतृत्व के संकट से जूझ रही पार्टी की कमान अपने हाथों में ली और 2004 में उनकी ही अगुवाई में कांग्रेस ने एनडीए को केंद्र की सत्ता से बाहर किया। 2009 के आम चुनावों में उन्होंने फिर से लोकसभा का चुनाव जीता और केंद्र में सरकार बनाई। 'टाइम' मैगजीन उन्हें दुनिया के 100 सबसे ताकतवर लोगों में शुमार कर चुकी है। सोनिया गांधी दिल्ली में 10, जनपथ में रहती हैं। सोनिया लोकसभा में रायबरेली संसदीय सीट का प्रतिनिधित्व करती हैं। वे आम तौर पर पत्रकारों को इंटरव्यू नहीं देती हैं। हाल ही में लोकसभा में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों को सरकारी नौकरी में प्रमोशन में आरक्षण से जुड़े बिल को जब समाजवादी पार्टी के सांसद ने फाड़ने की कोशिश की थी, तब सोनिया सांसद से उलझ गई थीं। राहुल गांधी सोनिया के बेटे हैं। सोनिया का जन्म 1946 में इटली में हुआ था। सोनिया गांधी राहुल गांधी और प्रियंका वाड्रा की मां हैं। 
 (तस्वीर: राजीव गांधी के साथ सोनिया गांधी) 
 
कितनी पढ़ी-लिखी हैं ममता-माया-जया? जानिए 10 महिला नेताओं के बारे में
सुषमा स्वराज 
 लोकसभा में नेता विपक्ष सुषमा स्वराज मध्य प्रदेश की विदिशा लोकसभा सीट से सांसद हैं। उनका जन्म 1953 में हरियाणा के पलवल में हुआ था। सुषमा के पिता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सक्रिय कार्यकर्ता थे। छात्रा के रूप में सुषमा लगातार तीन साल तक हरियाणा राज्य में संस्कृत और हिंदी की सर्वश्रेष्ठ वक्ता चुनी गई थीं। सुषमा ने अंबाला कैंट के एसडी कॉलेज से बीए की डिग्री संस्कृत और राजनीति विज्ञान में ली। इसके बाद पंजाब यूनिवर्सिटी से एलएलबी की पढ़ाई की और 1973 से सुप्रीम कोर्ट में वकालत की प्रैक्टिस शुरू कर दी। इसी दौरान सुषमा ने अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) की सदस्यता भी ले ली। 1996 में वे दक्षिण दिल्ली संसदीय सीट से पहली बार लोकसभा में पहुंची थीं और अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री बनी थीं। अक्टूबर, 1998 में वे दिल्ली की मुख्यमंत्री भी बनीं। लेकिन कुछ ही महीनों में प्याज की ऊंची कीमत जैसे मुद्दे के चलते बीजेपी की विधानसभा चुनाव में करारी हार हुई और वे फिर से राष्ट्रीय राजनीति में लौट आईं। 1999 में सुषमा स्वराज ने सोनिया गांधी को कर्नाटक की बेल्लारी सीट पर लोकसभा चुनाव में चुनौती दी थी, लेकिन इसमें उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा था। बाद में सुषमा ने राज्यसभा सदस्य के तौर पर संसद में वापसी की और वाजपेयी की सरकार में फिर से मंत्री बनीं। दिसंबर, 2009 में सुषमा लोकसभा में नेता, विपक्ष बनीं। सुषमा स्वराज के पति स्वराज कौशल हैं। स्वराज सुप्रीम कोर्ट में वकालत करते हैं। 

कितनी पढ़ी-लिखी हैं ममता-माया-जया? जानिए 10 महिला नेताओं के बारे में
ममता बनर्जी 
 पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी। तीन दशकों से भी ज्यादा समय तक बंगाल पर राज करने वाले लेफ्ट को उखाड़ फेंकने वाली ममता बनर्जी भारतीय राजनीति में इतना प्रभाव रखती हैं कि देश के इतिहास में पहली बार एक रेलमंत्री को रेल बजट पेश करते ही मंत्रालय से बाहर करवा देती हैं। अमेरिका की 'टाइम' मैगज़ीन ममता बनर्जी को विश्व के 100 सबसे ज्यादा प्रभावशाली व्यक्तियों में शुमार कर चुकी है। 'टाइम' ने पिछले साल ममता बनर्जी को 92वें स्थान पर रखा था। ममता की तारीफ में पत्रिका ने लिखा, ‘सांसदों की खरीद-फरोख्त के लिए मशहूर नई दिल्ली के सत्ता के गलियारों में भी उन्होंने अपनी अलग छाप छोड़ी। सड़क पर उन्होंने वामपंथियों को पटखनी दी।’ अपने समर्थकों के बीच ‘दीदी’ के नाम से मशहूर ममता बनर्जी के आलोचक उन्हें अस्थिर मानसिकता वाली नेता कहते हैं। ममता बनर्जी को अक्सर बेहद सादी सूती साड़ी और हवाई चप्पल में देखा जाता है। उनके हाथ में एक कपड़े का थैला होता है और वे जब भी दिल्ली आती हैं तो उन्हें मारुति कार में आते-जाते देखा जाता है। ममता बनर्जी अपने तेवरों के लिए जानी जाती हैं। ममता ने बंगाल की अनदेखी पर रेलमंत्री रामविलास पासवान पर अपनी शाल फेंक दी थी और समाजवादी पार्टी सांसद अमर सिंह का कॉलर भी पकड़ लिया था। ममता बनर्जी का जन्म 1955 में हुआ था। वे जब बहुत कम उम्र की थीं, तभी उनके पिता का निधन हो गया था। ममता बनर्जी ने कलकत्ता विश्वविद्यालय से एलएलबी और एजुकेशन में डिग्री हासिल की है। ममता ने 1970 में कांग्रेस के साथ अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआती की थी। 1997 में ममता ने कांग्रेस छोड़कर ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस का गठन किया था। 

कितनी पढ़ी-लिखी हैं ममता-माया-जया? जानिए 10 महिला नेताओं के बारे में
मायावती 
 देश में दलितों की सबसे बड़ी नेता के तौर पर मायावती स्थापित हो चुकी हैं। वे चार बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रही हैं। पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिंहा राव उन्हें 'लोकतंत्र का चमत्कार' कहते थे। देश के सबसे अहम राजनीतिक सूबे में बीजेपी औऱ कांग्रेस जैसी पार्टियों को पीछे छोड़कर मायावती की बीएसपी को मौजूदा समय में नंबर दो की पोजिशन हासिल है। मायावती के समर्थक उन्हें ‘बहनजी’ कहते हैं। 1956 में जन्मी मायावती के शुरुआती दिन दिल्ली की इंद्रपुरी कॉलोनी में गुजरे थे। उनके पिता प्रभु दयाल डाक विभाग में नौकरी करते थे। मायावती ने एलएलबी और बीएड की डिग्री ली है। वे कुछ दिनों तक टीचर भी रही हैं और उस दौर में वे आईएएस अधिकारी बनने के सपने देखा करती थीं। लेकिन कांशीराम से परिचय होने के बाद वे राजनीति में सक्रिय हो गई थीं। उन्होंने बिजनौर से लोकसभा चुनाव लड़ा था, जहां उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा था। लेकिन मायावती ने हार नहीं मानी और दलितों और शोषितों की आवाज बुलंद करती रहीं। कांशीराम के अस्वस्थ होने और बाद में उनके निधन के बावजूद मायावती ने बीएसपी का जनाधार बढ़ाया और पार्टी की कमान अपने हाथों में ले ली। उन्होंने पार्टी को 2007 के विधानसभा चुनाव में स्पष्ट बहुमत के साथ सत्ता दिलाई। हालांकि, यूपी की मुख्यमंत्री के तौर पर उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के भी कई आरोप लगे हैं। 2009 के लोकसभा चुनावों में मायावती ने अपने समर्थकों से अपील की थी कि वे बीएसपी को ज़्यादा से ज़्यादा वोट के साथ जीत दिलवाएं ताकि उन्हीं के शब्दों में 'दलित की बेटी' यानी वे खुद प्रधानमंत्री बन सकें। इनदिनों मायावती सरकारी नौकरियों में एससी/एसटी को आरक्षण दिए जाने की मांग उठा रही हैं।

कितनी पढ़ी-लिखी हैं ममता-माया-जया? जानिए 10 महिला नेताओं के बारे में
उमा भारती 
 उमा भारती का जन्म 1959 में मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ में हुआ था। बहुत ही कम उम्र में उन्होंने हिंदू धर्म ग्रंथों का पाठ शुरू कर दिया था। उनके पिता नास्तिक थे। जीवन के शुरुआती दौर में ग्वालियर की राजमाता विजयराजे सिंधिया ने उनकी सहायता की थी। साध्वी ऋतंभरा के साथ उन्होंने अयोध्या में राम मंदिर आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई थी। उनके बारे में कहा जाता है कि वे सिर्फ आठवीं कक्षा तक औपचारिक तौर पर पढ़ी-लिखी हैं, लेकिन फर्राटे से अंग्रेजी और धारा प्रवाह हिंदी बोलती हैं। वे पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में विभिन्न मंत्रालयों में रही थीं।  2003 के विधानसभा चुनाव में उनकी अगुवाई में बीजेपी को मध्य प्रदेश में तीन-चौथाई बहुमत मिला था। लेकिन 1994 में कर्नाटक के हुबली में हुए दंगे से जुड़े मामले को लेकर अगस्त, 2004 में उन्हें मध्य प्रदेश के सीएम की कुर्सी छोड़नी पड़ी थी। इसके बाद कुछ समय बाद उन्होंने भाजपा छोड़ दी थी और भारतीय जनशक्ति पार्टी का गठन किया था। लेकिन जून, 2011 में वे फिर से बीजेपी में वापस आईं। 2012 में यूपी में हुए विधानसभा चुनाव में उमा भारती ने बीजेपी की अगुवाई की थी। इन दिनों वे गाय और गंगा संरक्षण से जुड़े आंदोलनों का समर्थन कर रही हैं। 

कितनी पढ़ी-लिखी हैं ममता-माया-जया? जानिए 10 महिला नेताओं के बारे में
वसुंधरा राजे  
राजस्थान की राजनीति में बड़ा नाम बन चुकीं वसुंधरा राजे का जन्म 1953 में मुंबई में हुआ था। वे विजयराजे सिंधिया और ग्वालियर के पूर्व महाराज जिवाजी राव सिंधिया की बेटी हैं। उनकी शुरुआती पढ़ाई-लिखाई तमिलनाडु के कोडाईकैनाल के एक कॉन्वेंट स्कूल में हुई। वसुंधरा ने मुंबई के सोफिया कॉलेज से अर्थशास्त्र और राजनीति विज्ञान में बीए किया। उन्होंने 1982 में राजनीति में कदम रखा था। 1985 में वे पहली बार राजस्थान विधानसभा में बतौर विधायक पहुंची थीं। अटल बिहारी वाजपेयी की एनडीए सरकार में वे केंद्र में मंत्री रह चुकी हैं। वसुंधरा के जीवन में बड़ा मोड़ तब आया जब उनकी अगुवाई में बीजेपी ने 2003 में राजस्थान विधानसभा में बड़ी जीत दर्ज की थी। वसुंधरा के कार्यकाल में राजस्थान में बुनियादी ढांचे का विकास किया गया, लेकिन जातीय हिंसा के दाग भी उनकी सरकार पर लगे। 2013 में राजस्थान में फिर से विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं और इस बात की पूरी संभावना है कि वसुंधरा राजे मुख्यमंत्री के प्रबल दावेदार के तौर पर फिर उभरेंगी। वसुंधरा की शादी धौलपुर के शाही परिवार के हेमंत सिंह से 1972 में हुई थी। लेकिन शादी के कुछ समय बाद ही दोनों अलग हो गए थे। वसुंधरा के बेटे दुष्यंत सिंह झालावाड़ सीट से लोकसभा के सदस्य हैं। 
कितनी पढ़ी-लिखी हैं ममता-माया-जया? जानिए 10 महिला नेताओं के बारे में
जयललिता 
 तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जे. जयललिता का जन्म 1948 में एक तमिल परिवार में हुआ था। जयललिता के दादा मैसूर रियासत में सर्जन थे। जयललिता जब दो वर्ष की थीं, तभी उनके पिता की मृत्यु हो गई थी। इसके बाद जयललिता अपनी मां के साथ बेंगलुरु चली गईं। इस बीच, जयललिता की मां ने तमिल सिनेमा में संध्या नाम से अभिनय भी शुरू कर दिया। बेंगलुरु में जयललिता ने बिशप कॉटन गर्ल्स स्कूल में पढ़ाई की। इसके बाद उनकी पढ़ाई-लिखाई चेन्नई में हुई। इसके बाद जयललिता ने तमिल और तेलुगु की कई फिल्मों में बतौर हीरोइन काम किया। वे धर्मेंद्र के साथ एक हिंदी फिल्म में भी काम कर चुकी हैं। उनके बारे में कहा जाता है कि उन्हें एमजी रामचंद्रन राजनीति में लेकर आए थे। लेकिन इस बात को जयललिता नकारती रही हैं। उनके समर्थक उन्हें 'अम्मा' कहते हैं। रामचंद्रन के निधन के बाद जयललिता ने खुद को एमजीआर की उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था। उनकी अगुवाई में एआईएडीएमके ने डीएमके को विधानसभा चुनाव में करारी मात दी है। यूपीए सरकार को समर्थन देने वाली डीएमके के अगुवा करुणानिधि जयललिता के सबसे बड़े विरोधी हैं। इन दिनों जयललिता यूपीए सरकार का कई मुद्दों पर विरोध कर रही हैं। 

कितनी पढ़ी-लिखी हैं ममता-माया-जया? जानिए 10 महिला नेताओं के बारे में
हरसिमरत कौर बादल 
 अकाली दल बादल की लोकसभा सांसद हरसिमरत कौर बादल पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल की बहू और सुखबीर सिंह बादल की पत्नी हैं। हरसिमरत का जन्म 1966 में हुआ था। हरसिमरत ने टेक्सटाइल डिजाइन में ग्रैजुएशन किया है। 2009 के लोकसभा चुनाव में हरसिमरत कौर बादल ने भठिंडा संसदीय सीट पर कांग्रेस के रनिंदर सिंह को पराजित किया था। हरसिमरत संसद में 1984 के सिख दंगों के मुद्दे को जोर-शोर से उठा चुकी हैं। उन्होंने कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ 'नन्हीं चान' नाम के आंदोलन की अगुवाई की थी। 

कितनी पढ़ी-लिखी हैं ममता-माया-जया? जानिए 10 महिला नेताओं के बारे में
स्मृति ईरानी 
 बीजेपी की नेता और अभिनेत्री स्मृति ईरानी का जन्म 1972 में एक पंजाबी पिता और बंगाली मां के घर हुआ था। उनके पिता एक कूरियर कंपनी चलाते थे। उन्हें सबसे बड़ी पहचान टीवी सीरियल 'क्योंकि सास भी कभी बहू थी' में तुलसी के किरदार से मिली थी। स्मृति की शादी जुबिन ईरानी से हुई है। स्मृति 2003 में बीजेपी से जुड़ी थीं। 2004 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने चांदनी चौक संसदीय सीट से उन्हें पार्टी का टिकट दिया था। उनके खिलाफ कांग्रेस की ओर से कपिल सिब्बल चुनावी मैदान में थे। इस चुनाव में स्मृति को हार का मुंह देखना पड़ा था। लेकिन इसके बावजूद वे पार्टी के लिए काम करती रहीं। 2010 में स्मृति को बीजेपी की महिला इकाई का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया था। अगस्त, 2011 में वे बीजेपी की ओर से राज्यसभा की सदस्य बनीं। संसद में महिलाओं से जुड़े मुद्दों को वे प्रमुखता से उठाती रही हैं। इन दिनों वे टीवी पर बहुत कम दिखाई देती हैं और अक्सर उन्हें समाचार चैनलों पर गंभीर राजनीतिक बहसों में हिस्सा लेते हुए देखा जा सकता है। हाल ही में उन्होंने कांग्रेस के संजय निरूपम के खिलाफ मानहानि का मुकदमा भी किया है। 

कितनी पढ़ी-लिखी हैं ममता-माया-जया? जानिए 10 महिला नेताओं के बारे में
अंबिका सोनी 
 अंबिका सोनी पूर्व केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री हैं। इन दिनों वे कांग्रेस संगठन में अहम कामकाज देख रही हैं। उन्हें सोनिया के सबसे करीबी नेताओं में शुमार किया जाता है। उनका जन्म 1942 में लाहौर में हुआ था। उनके पिता आईसीएस अफसर थे। अंबिका ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के इंद्रप्रस्थ कॉलेज से एमए की पढ़ाई की। उनकी शादी भारतीय विदेश सेवा के अधिकारी उदय सोनी से हुई थी। अंबिका ने 1969 में अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की थी।1975 में वे यूथ कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष चुनी गई थीं और संजय गांधी के साथ पार्टी का कामकाज देखा करती थीं।1976 में वे पहली बार राज्यसभा पहुंची थीं।1998 में वे ऑल इंडिया महिला कांग्रेस की अध्यक्ष चुनी गई थीं। 
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