के इस विचार को युगों युगों से मानते हुए मानवतावादी विचारकों को ब्राह्मणवादी पाखंड, अंधविश्वास और चमत्कार कभी भी रास नहीं आया। जिसमें इन पाखंडियों द्वारा बहुजन समाज को फंसा कर लंबे समय से उनपर सांस्कृतिक साम्राज्यवाद का कवच डालकर राज्य करते आ रहे हैं।
यहां पर जिस आलेख को इस व्यक्ति के लिए लिखा गया है वह 100% सही साबित होता है।
-डॉ लाल रत्नाकर
"I.P. Singh @IPSinghSp
आज राहुल गांधीजी उनकी बहन प्रियंका बाड्रा ने साबित कर दिया कि वे सनातन धर्म परंपरा और संस्कृति के घोर विरोधी हैं।
कुंभ स्नान सनातन काल से चला आ रहा है इस बार का आयोजन BJP ने किया तो 2012-13 का आयोजन सपा ने किया था।
सोनिया गांधीजी ईसाई धर्म से हैं और प्रियंका बाड्रा ने ईसाई धर्म में विवाह किया है।
अगर वे स्नान नहीं करती हैं अपने ईसाई धर्म का पालन करती हैं तो सवाल नहीं उठेंगे पर राहुल गांधी जी समय समय पर अपने को हिन्दू बताते हैं।
आज महाशिवरात्रि पर्व का अंतिम स्नान था वे रायबरेली आये पर कुंभ स्नान करने नहीं गये चाहते तो रायबरेली में गंगा जी बहती हैं वहाँ भी स्नान कर सकते थे पर उन्हें हिन्दू धर्म से चिढ़ है यह उन्होंने आज साबित कर दिया।
@RahulGandhi
26/02/25; 8:42 PM
आईपी सिंह की इसी पोस्ट पर वीरेंद्र दहिया की टिप्पणी इस प्रकार है जिसे ठीक से पढ़ा जाना चाहिए-अ
हीर एस के यादव द्वारा इस पोस्ट को अपनी पोस्ट पर लगाया गया है -
"Samajwadi Party प्रमुख Akhilesh Yadav जी इस संघी आई पी सिंह से जल्दी पीछा छुड़ा लीजिए.. नहीं तो यह आदमी आपकी तथा कथित PDA की विचारधारा में भूसा भर देगा..
वैज्ञानिक चेतना ही सामाजिक न्याय की बुनियाद है डॉ आंबेडकर स्पष्ट थे कि जो यह मानता है कि स्नान करने से पाप मुक्ति मिलती है, सभी कर्मों का कर्ता ईश्वर है, और जाति श्रेष्ठता का बोध रखता हो वह समाज को दिशा नहीं दे सकता..
यह बीजेपी का स्लीपर सेल संघी समाजवादी आई पी सिंह लगातार Rahul Gandhi जी और Priyanka Gandhi Vadra के बारे में अनर्गल बातें लिखता रहता है
यह संघी मानसिक रूप से विकृत है समाजवादी पार्टी में प्लांट किया गया है
आप मनुवादी मानसिकता के खुद ही प्रताड़ित व्यक्ति हैं आपके घर को गंगाजल से धोया गया था आपको आला दर्जे का हिन्दू कभी नहीं माना जाएगा इस तथाकथित सनातनी व्यवस्था में आप दोयम दर्जे के हिंदू है
आपको इस पर कार्यवाही करनी चाहिए अगर आप कार्रवाई नहीं करते हैं तो माना जाएगा कि आपकी शह पर ही हो रहा..
-Mr Virender Dahiya"
श्री अखिलेश यादव जी
मिस्टर वीरेंद्र दहिया की पोस्ट से यह साबित हो रहा है कि वह आपके सच्चे हितैषी हैं, इन पर विश्वास किया जाना चाहिए और उनके विचारों पर गंभीरता से मंथन करना चाहिए।
इस समय जो लड़ाई लड़ी जा रही है उसका मुख्य हथियार है सांस्कृतिक साम्राज्यवाद उसी सांस्कृतिक साम्राज्यवाद की नकल करके हम इस लड़ाई को परास्त नहीं कर सकते उल्टे इसे मजबूत ही करेंगे।
मेरी निजी बातचीत में आपने संस्कृति के कुछ महत्वपूर्ण अंगों से लगाव रखते हैं यहां तक तो बात समझ में आती है मैंने उसी समय भी कहा था कि इसमें कोई बुराई नहीं है कि कबीर, मीरा, संत तुकाराम, संत रविदास आदि के भजन मानवतावादी भजन है इन्हें सुना ही नहीं जाना चाहिए जोर-जोर से बजाय जाना चाहिए जिससे तमाम पीडीए के लोगों के कानों तक पाखंड अंधविश्वास और चमत्कार के खिलाफ मजबूत आवाज पहुंचाई जा सके, इस काम के लिए आप एक संस्था खड़ी कर सकते हैं जो सांस्कृतिक साम्राज्यवाद के खिलाफ सांस्कृतिक समाजवाद की अवधारणा पर काम करे।
लेकिन लंबे समय से यह देखने में आ रहा है कि आपके इर्द गिर्द अखंड पाखंड अंधविश्वास और चमत्कार के चाहने वाले विराजमान रहते हैं। जिन्हें यह बात ही समझ में नहीं आती कि भारतीय राजनीति किस दिशा में जा रही है। या वह लोग जो राजनीति की जा रही है उसके समर्थक बनाए रखने के लिए आपके करीब लगा दिए गए हैं।
यदि उस दिशा में कोई ठीक से लड़ रहा है तो वह नाम है श्री राहुल गांधी जी का जहां तक मुझे लगता है राहुल गांधी के मन में आपके प्रति बहुत अच्छा स्थान है, सम्मान है और विश्वास है, ऐसा कई बार दिखाई दिया है जिन लोगों को यह स्थान पसंद नहीं है वह निरंतर राहुल गांधी से आपकी दूरी बढ़ाने के लिए काम कर रहे हैं। ऐसा भी लगता है कि उसे दूरी को बधाई रखने में उनके स्सपान्सरों ने उन्हें यहां लगा रखा है।
यह समय कांग्रेस और सपा के बड़ा होने का नहीं है बल्कि भाजपा को खत्म करने का है, यह आईपी सिंह जो अपने को पूर्व भाजपाई बताता है और काफी आंतरिक आत्मविश्वास के साथ उस व्यक्ति के मन में भाजपाई होना समाया हुआ है (यहां भाजपाई होना व्याख्याित किया जाना चाहिए इसलिए की इस समय भाजपा ही एक ऐसी पार्टी है जो सवर्णो के हित को अच्छी तरह से पूरा करने में लगी हुई है इसलिए वह हर सवर्ण जो जातिवादी है वर्णवादी है मनुवादी है वह कहीं भी हो अपने हित की चिंता सर्वोपरि रखता है । मुझे कहीं भी एक ऐसा व्यक्ति नहीं दिखाई दिया जो इस विचार से अलग हो भले ही वह सपा में हो बसपा में हो या कांग्रेस में वह वहां रहते हुए भाजपा के उत्थान पर हमेशा सजग रहता है) अब चाहे राहुल गांधी जी हों आप हों श्री तेजस्वी यादव जी या बहुजन समाज पार्टी की बहन मायावती जी हों। आप लोगों के इर्द-गिर्द ऐसेलगों का जबरदस्त जमावड़ा है।
आपके पास ऐसे लोगों की टीम क्यों नहीं है जो किसी सदन में जाने की बजाय वैचारिक रूप से सामाजिक कार्य को अंजाम दे सकें, प्रोफेसर कांचा एलैइया शेफर्ड को पढ़ते समय इस बात की अनुभूति होती है कि कितना व्यवस्थित तरीके से बहुजन समाज के लोगों को लिखने पढ़ने से आज तक वंचित किया गया है यदि ई वी रामास्वामी पेरियार और बाबा साहब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर को छोड़ दिया जाए तो अनेक संतों ने भी इस पर काम किया है जिन्होंने पूरे समाज को यह समझाने का प्रयास किया है कि अखंड पाखंड और अंधविश्वास को फैलाने वाला मनुवादी समाज कभी भी बहुजन समाज का हित नहीं चाहेगा।कांग्रेस और भाजपा के प्रशंसक आईपी सिंह की नफरत का मूल कारण है कि राहुल गांधी जी हमेशा संघ और मनुस्मृति के खिलाफ बोलते हैं और वह मानते हैं कि यह दो संस्थाएं जिनका विचार देश को खंड-खंड करके ब्राह्मणवाद का पुनरुत्थान करने में लगा हुआ है। इसके आसपास के रास्ते पर चलने वाला हर व्यक्ति उसी ब्राह्मणवाद को मजबूत करता नजर आता है जो आमतौर पर महाकुंभ महाशिवरात्रि या इसी प्रकार के अन्य धार्मिक उत्सवों पर दिखाई देता है जिसे आम जनता को बेवकूफ बनाने के लिए आयोजित और प्रचारित किया जाता है।
इसका बहुत सुंदर उदाहरण अयोध्या और प्रयागराज को धार्मिक धंधे के रूप में बड़ा-चढ़कर दिखाने और का राजनीतिक सत्ता हथियाने का शुरू से ही सुनियोजित प्रयास किया गया है। इसका खुलासा करने के लिए हमें अध्ययन करने की जरूरत है जो हमारे बुद्धिजीवी और महापुरुषों ने लिखा है।
यहीं पर श्री कृष्ण के बारे में लिखते हुए प्रोफेसर कांचा हे कहते हैं -
"सभी हिन्दू देवताओं में सिर्फ कृष्ण ऐसे हैं जिन्हें गडरिये के रूप में दर्शाया गया है। वास्तव में कृष्ण के यादव सम्बन्ध और उन्हें पशु चराने वाले एक देवता के रूप में दर्शाए जाने के बीच एक निश्चित सम्बन्ध है। न तो ब्रह्मा का जो ब्राह्मण संतान थे और न विष्णु के अवतार राम का जो क्षत्रिय थे, किसी का भी सम्बन्ध कृष्ण की तरह पशुओं से नहीं दिखाया गया है। उन्होंने युद्ध लड़ा, जो उनके साहित्य की सर्वोच्च आध्यात्मिक गतिविधि है।
दरअसल कृष्ण की अच्छाई का आधार भी एक युद्ध ही है जिसका संचालन उन्होंने किया और एक हिन्दू धार्मिक पुस्तक 'भगवद्गीता’की रचना की। भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के दौरान बार-बार गीता की व्याख्या और पुनर्व्याख्या की गयी क्योंकि श्रम की भूमिका को लेकर यह एक तरह की अस्पष्टता पैदा करती है, और अंततः ब्राह्मण और वैश्यों ने इसकी ऐसी व्याख्या कर ही ली जो उनके वर्णधर्म को रास आती थी।
आधुनिक हिन्दुत्व के लिए कृष्ण अगर मुख्य नायक नहीं हैं तो उसके दो कारण हैं :
1. उनका सम्बन्ध यादवों से, जो उन्हें अपना राष्ट्रवादी नायक मानते हैं, और पशु चराने से है, और,
2. कृष्ण ब्राह्मणों की विश्व-दृष्टि के अनुसार नहीं चले, राम की तरह उन्होंने ब्राह्मणों के निर्देश नहीं माने। उन्होंने अपने आप को ब्राह्मणों से ऊपर घोषित किया।
हालांकि वे वर्णधर्म को मानते थे लेकिन अपने ब्राह्मण गुरुओं के आदेश पर उन्होंने शूद्रों का वध नहीं किया। वे द्रोणाचार्य और भीष्म के ऊपर रहे जबकि राम हमेशा वशिष्ठ और अन्य ब्राह्मण गुरुओं के वशीभूत रहे। शम्बूक का वध भी राम ने ब्राह्मण गुरुओं के कहने पर ही किया था। यही कारण है कि संघ परिवार राम को अपने अखंड हिन्दू भारत का नायक बनाता है और कृष्ण को हाशिये पर रखता है।
यादवों के इस प्रक्षेपण का कारण यह है कि वे पूरे देश में हमेशा ही हिन्दुओं के शत्रु रहे। लालू प्रसाद यादव, मुलायम सिंह यादव और एक यादव लेखक द्वारा लिखी पुस्तक ‘व्हाई आई एम् नॉट हिन्दू’ का उद्भव मांस और दूध के अर्थशास्त्रियों के ऐतिहासिक नायकत्व तथा ब्राह्मणों की परजीविता का ही हिस्सा है।
यहाँ तक कि आज के आधुनिक युग में भी ब्राह्मणों ने, वे चाहे जिस भी विचारधारा से सम्बद्ध हों, उत्पादक समूहों के इतिहास का आकलन उस तरह नहीं किया है जैसे किया जाना चाहिए था। कृष्ण के वंशज होने के बावजूद समाज में यादवों का स्थान सर्वोच्च नहीं है। उनकी सामाजिक स्थिति ब्राह्मणों से ऊपर होनी चाहिए थी और जिस दैवी पुस्तक को खुद कृष्ण द्वारा लिखित माना जाता है उसमें पशु चराने को सबसे सम्मानित आध्यात्मिक कर्म के रूप में चित्रित किया जाना चाहिए था। अगर ऐसा होता तो यादव खुद ही मंदिरों में सुबह-शाम गीता का पाठ किया करते और दिन भर कृष्ण की तरह गाय चराया करते।
इस तरह पशु चराने की गतिविधि को आध्यात्मिक दर्जा मिल सकता था। पशुपालक होते हुए अगर कृष्ण गीता लिख सकते हैं तो यादवों को भी शिक्षा पाने और किताबें लिखने का अधिकार मिलना चाहिए था। ऐसे में भारतीय गुरुकुलों के मुखिया यादव हुआ करते और उनका नाम भी शायद ‘गडरिया विद्यालय’ हुआ करता।"
इस प्रसंग को बहुत विस्तार से वह अपनी पुस्तक हिंदुत्व मुक्त भारत में करते हैं जिसका बहुत कम पाठ यादव और समाज ने आज तक किया होगा।
अब यहां इस बात का कहा जाना ज्यादा प्रासंगिक है कि सांस्कृतिक समाजवाद बनाने के लिए हमें साहित्यिक समृद्धि की बहुत जरूरत पड़ेगी जिसके लिए एक स्कूल की स्थापना अनिवार्य हिस्सा होगी।
अखिलेश जी के तरह के युवाओं को भविष्य की राजनीति करने के लिए "हमारे जैसे अध्ययनशील समूह की सख्त जरूरत है लेकिन न जाने क्यों वह इस बात से घबराते हैं की सत्य बोलना अच्छा नहीं है झूठ बोलने के लिए तो उनके इर्द-गिर्द मौजूद मनुवादी सोच के लोग पर्याप्त मात्रा में हैं लेकिन कबीर जैसा सत्य कहने वाला व्यक्ति कहां से ले आएंगे"। और जब तक ऐसे लोग नहीं आएंगे तब तक वह सत्य को चुनौती के साथ अपने दुश्मनों के सामने पेश नहीं कर सकते।
इसलिए मेरा मानना है कि हमें ऐसे नेताओं के इर्द-गिर्द निरंतर लगे रहकर के यह दबाव बनाने की जरूरत है कि वह "सांस्कृतिक समाजवाद" की अवधारणा पर काम करने की योजना पर काम करें जो राजनीतिक कार्य से बिल्कुल भिन्न होगा।
इसी से संघ और मनुस्मृतिवादी पाखंड का मुकाबला किया जा सकता है।
महाकुंभ में स्नान करके उनसे लड़ना संभव नहीं है क्योंकि वह रेनकोट पहन करके बहुत मुश्किल से उस पानी में डुबकी लगाते हुए डर रहे थे और दिल्ली से जाकर अपनी एजेंसियों से ही यह कहलवा रहे थे कि वह पानी तो जहरीला हो गया है।
इसलिए सांस्कृतिक साम्राज्यवाद के खिलाफ लड़ाई लड़ी जाए तभी ऐसे अवसरवादी और जासूसों को पहचाना जा सकता है।
आमीन
साभार ; अहीर एस के की पोस्ट। प्रो.कांचा इलैया एवं अन्य को भी।
(कृपया इस पोस्ट को अधिक से अधिक शेयर करिए जिससे आम आदमी तक असली लड़ाई की योजना पहुंच सके!)
Ajay Singh Yadav
Akhilesh Yadav
Aheer S. K. Yadav
Ajay Yadav
Omprakash Yadav Janardan Yadav Atul Yadav Vishram Singh Frank Huzur Rahul Gandhi Jagdish Yadav Urmilesh B.r. Viplavi Subhash Chandra Kushwaha Bijender Yadav Bishunpur Jaunpur ALL INDIA YADAV MahaSabha
कृपया इस लेख को पढ़िए और इसे आगे तक बढ़ाईऐ।
-डॉ लाल रत्नाकर
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