अब भविष्य गठबंधन सरकार का ही है: मुलायम
सांगली (महाराष्ट्र)/एजेंसी | Last updated on: March 25, 2013 12:30 AM IST

समाजवादी पार्टी प्रमुख मुलायम सिंह यादव का कहना है कि एक पार्टी के राज करने का समय गुजर चुका है और अब भविष्य गठबंधन सरकार का ही है।
उन्होंने कहा कि गठबंधन सरकार देश की जरूरत है क्योंकि कोई एक पार्टी अकेले अपने दम पर सरकार नहीं बना सकती।
सपा के 22 सांसदों ने कांग्रेस की अध्यक्षता वाली यूपीए सरकार को बाहर से समर्थन दिया हुआ है। उन्होंने कहा कि यह वह समय है जब एक जैसा लक्ष्य रखने वाली पार्टियां सामाजिक परिवर्तन के लिए एकजुट हो रही हैं।
महाराष्ट्र, बिहार और उत्तर प्रदेश में ऐसा दिखने को मिल रहा है। पश्चिमी महाराष्ट्र में वाल्वा गांव में स्वतंत्रता सेनानी और राज्य में सहकारिता आंदोलन के अग्रणी नागनाथ अन्ना नायकवडी की पहली पुण्यतिथि पर आयोजित कार्यक्रम में हिस्सा लेने यहां आए थे।
1996 में रक्षा मंत्री रह चुके मुलायम ने रक्षा बजट के बढ़ाए जाने को किसानों की दुर्दशा से जोड़ा। उन्होंने कहा, ‘किसानों और कृषि सेक्टर का समर्थन करने वाला चीन भारत से कहीं आगे है। रक्षा बजट में हो रही बढ़ोत्तरी की वजह से किसानों को परेशानी झेलनी पड़ रही है।
किसानों को सख्त रूप से समर्थन की जरूरत है।’ पार्टी संगठन के बारे में उन्होंने कहा कि समाजवादी पार्टी अब सिर्फ सीनियरों की पार्टी नहीं रही है बल्कि इसमें युवा और महिलाएं भी शामिल हो रही हैं। यही वजह है कि अखिलेश उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने।
उन्होंने कहा कि गठबंधन सरकार देश की जरूरत है क्योंकि कोई एक पार्टी अकेले अपने दम पर सरकार नहीं बना सकती।
सपा के 22 सांसदों ने कांग्रेस की अध्यक्षता वाली यूपीए सरकार को बाहर से समर्थन दिया हुआ है। उन्होंने कहा कि यह वह समय है जब एक जैसा लक्ष्य रखने वाली पार्टियां सामाजिक परिवर्तन के लिए एकजुट हो रही हैं।
महाराष्ट्र, बिहार और उत्तर प्रदेश में ऐसा दिखने को मिल रहा है। पश्चिमी महाराष्ट्र में वाल्वा गांव में स्वतंत्रता सेनानी और राज्य में सहकारिता आंदोलन के अग्रणी नागनाथ अन्ना नायकवडी की पहली पुण्यतिथि पर आयोजित कार्यक्रम में हिस्सा लेने यहां आए थे।
1996 में रक्षा मंत्री रह चुके मुलायम ने रक्षा बजट के बढ़ाए जाने को किसानों की दुर्दशा से जोड़ा। उन्होंने कहा, ‘किसानों और कृषि सेक्टर का समर्थन करने वाला चीन भारत से कहीं आगे है। रक्षा बजट में हो रही बढ़ोत्तरी की वजह से किसानों को परेशानी झेलनी पड़ रही है।
किसानों को सख्त रूप से समर्थन की जरूरत है।’ पार्टी संगठन के बारे में उन्होंने कहा कि समाजवादी पार्टी अब सिर्फ सीनियरों की पार्टी नहीं रही है बल्कि इसमें युवा और महिलाएं भी शामिल हो रही हैं। यही वजह है कि अखिलेश उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने।
प्रसंगवश ;
----------------------
इतिहास से -
.............जिन लोगों ने भी नेता जी को जाना है वह इस बात में यकीं रखते हैं की नेताजी जो कहते हैं वो करते भी हैं, जिन कारणों से नेता जी राजनितिक ऊँचाइयों को नहीं छू पाए उसमें उनके सहयोगियों की बहुत बड़ी साजिश भी रही है - बेनी प्रसाद से ही शुरू करता हूँ एक जमाने में नेताजी के सबसे करीबी हुआ करते थे और इस जोड़ी को लोग उम्मीदों के मशाल के रूप में देखते थे, पर बेनी बाबू अपनी कौम में ही अलोकप्रिय होते गए जिसका गुस्सा वे नेता जी पर उतारते फिर रहे हैं। दूसरे नंबर पर जनेश्वर मिश्र को लेता हूँ नेता जी ने उन्हें आजीवन सत्ता के करीब रखा पर वे कभी भी नेता जी को अपने से बड़ा नहीं होने दिए, उलटे अकेले में उनकी जीतनी निंदा हो सकती थी करते रहे और इस संघर्ष पुरुष के श्रम का प्रसाद वैसे ही खाते रहे जैसे मध्यकाल का द्विज बुद्धि के नाम पर शुद्र का माल उडाता रहा हो ! तीसरे नंबर पर भाई अमर सिंह सीधे सादे समाजवादी को जिन रंगारंग दुनिया की सैर कराई की ओ आम आदमी से दूर ही नहीं गायब हो गया - उन दिनों तो बस यही गीत याद आता था - अजीब दास्तान है ..... !
एक धूर समाजवादी को पूंजीपतियों की पंगत में बैठाने का अंजाम तो भाई अमर सिंह को ही दिया जाना चाहिए अन्यथा इस जन नायक को संपत्ति बनाने वालों से क्या मोह। तीसरा नेत्र अगर किसी ने खोला तो ओ भाई अमर सिंह ही थे, भला हो बहन जी का जिन्होंने इस दलाल की औकात समझी और वो भी दगा दे गयी श्धरती पुत्रश् को बहाना था की उनके लठैतों ने सर्किट हाउस में उनके साथ ‘लट्ठमार होली खेल ली’ फिर क्या था उनका भी विश्वास डगमगाया और चली गयी ‘राम दरबार में’ वहां उनका अभिनन्दन हुआ और इस कांड की महानायक बनाकर जलते हुए उत्तर प्रदेश की कुर्सीपर इन्हें विराजमान किया गया । भाई अमर सिंह पानी डालने के नाम पर समाजवाद का खून पीते रहे और अपनी धमनियों को मोटी करते रहे जिससे समाजवाद का गला घोंट सकें और गला घोंटते रहे - राज बब्बर, बेनी वर्मा, आजम खान, सिसकते रहे पर अमर भाई ‘कुतरते रहे’ क्या मजाल कोई बोलने की हिम्मत करे नेता से की ये कठफोरवा की तरह कुतर रहा है नेता जी की नियत को।
छुटभइयों की क्या बिसात परिवार वालों की भी हिम्मत नहीं थी की भाई अमर सिंह के कर्मों पर कोई उंगली उठा सके। नेताजी को कहाँ पहुंचाकर आराम करने स्वदेश त्याग गए थे भाई अमर सिंह ‘दवाई’ का बहाना बनाकर । कारण पर मत जाइये ?
कैसे भागे भाई जी आप सब जानते हैं !
लोग आते रहे लोग जाते रहे, लम्बी कहानी है कभी फिर लिखेंगे अभी तो (लिखना थोर समझना ढेर)
भला हो बहन जी का वो सत्ता में आयीं और पूर्ण बहुमत से भाई अमर सिंह अपने ‘बिल’ में चले गए, समाजवाद - दलित और द्विज के आगे कमजोर पड़ गया, बहन जी ने सदियों की गुलामी का नामों निशाँ मिटाने का संकल्प लिया, पुराने घावों को यादकर इतिहास रचना आरम्भ किया राम मंदिर के बजाय उन्होंने आंबेडकर फुले कांशीराम और अपने स्मारक बनाने आरम्भ किये जिसे रोकने के लिए देश की सर्वोच्च अदालत तक ने हस्तक्षेप किया पर इतिहास बनता गया ‘जिन्हें इतिहास बनाना आता है उन्हें दौलत की कमी नहीं पड़ती’ इस इतिहास रचने की प्रक्रिया में जो भी गलत हुआ उसपर विचार सदियाँ करेंगी अभी तो इतिहास के लिए काम हो रहा था.
मिडिया, बुद्धिजीवी, द्विज द्रोह और सामन्तिओ को सत्ता पर कब्जे की प्रक्रिया के डर ने झकझोर दिया और ये जुट गए भाई अमर सिंह की तरह और जैसे भ्रष्टाचार की आंधी में नेता जी की सरकार चली गयी थी वैसे ही 2012 मे इतिहास रचने की प्रक्रिया रूक गयी।
पर अभी खत्म नहीं हुयी है इतिहास तो इतिहास ही है कभी रूक जाता है कभी बनने लगता है ।
पर नेताजी मान रहे हैं अब सीनियर्स की ही राजनिती नहीं रही तो उन्हें शायद यह याद नहीं है कि जब वे राजनिती में आये थे तब वे भी युवा थे पर आज के जैसे युवा नहीं, इंदिराजी भी स्त्री थीं और युवा नेत्री भी, उनके विरोध का एक बड़ा कारण यह भी की वह नेहरू की पुत्री थीं और बहुत से अनुभवी कांग्रेसियों से आगे उन्हें ले जाया जा रहा था, तब भी इंदिरा जी को बड़ा किया जा रहा था देश को नहीं । अब भी वही हो रहा है बिलकुल निराले ढंग से ।
इस होली पर राहुल जी (राहुल सांकृत्यायन) याद आ रहे हैं - उनकी दो पुस्तकें 1.तुम्हारी क्षय हो 2.घुमक्कड शास्त्र . अकारण नहीं उन्होंने कहा होगा पहली किताब में वह लिखते हैं ‘जब जब पिछड़े या शुद्र सत्ता की तरफ बढ़ते नजर आते हैं तब तब ऊँची जातियों के लोग लोग देश बेच देते हैं या विदेशियों को सौंप देते हैं । दूसरी में लिखते हैं घर से निकलों जो और मिलेंगे वो भी अपने होते जायेंगे। आज हम इन दोनों बातों को यहाँ प्रसंगवश लाये हैं क्योंकि होली के अवसर पर यदि हम इस सच को स्वीकार कर पायेंगे की देश सबका है हमारा ही नहीं तभी हर आदमी इसे बनाने का प्रयास करेगा।
नेताजी की चिंता कभी यह नहीं रही की फला ने कितना दगा दिया पर उन्हें हमेशा यह याद रहता है की किसने क्या किया। कहते हैं की नेता जी जरा कान के कच्चे हैं पर मैं ऐसा नहीं मानता, क्योंकि जबतक नेता जी के कान तक सच जाएगा नहीं तब तक झूठे नाना प्रकार के प्रचार करते रहेगें। इस बयां में भी वही सच्चाई है की ‘अब भविष्य गठबंधन सरकार का ही है-मुलायम। पर इस गठबंधन में होगा कौन ?
दरअसल कितनी बड़ी विडम्बना है कि जब पिछड़ा बन रहा होगा तब दलित अलग हो जाएगा/कर दिया जाएगा, जब दलित बन रहा होगा तब पिछड़ा अलग हो जाएगा/कर दिया जाएगा,
---------------
बुरा न मानंे ‘होली’ है। डा. लाल रत्नाकर
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें